★★ जगत दर्शन साहित्य ★★
◆ काव्य जगत ◆
● छोड़ आई शहर तुम्हारा ●
◆ प्रीति मधुलिका
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छोड़ आई वो शहर भी,
जहाँ बरबस ही याद तुम्हारी
चली आया करती थी
तन्हाई में डसने ।
यादें गर 'प्रीति' भरी हो,
तो किसी महफ़िल से कम नहीं
उन लम्हों का होना ।
लेकिन तुम्हारे साथ बिताए हुए
वो सारे पल मेरे लिए,
किसी मरघट से कम नहीं
क्योंकि उनमें दर्द पलता था
इश्क़ नहीं ।
सहर ही जब काली रात सी हो,
तब यादों की अस्थियों पे
सपनें नहीं बुना करते
क्योंकि टूटी हुई उम्मीद
कभी मुकम्मल इश्क़
हो ही नहीं सकता ।
जिनके दरमियां,
मन के फ़ासले होते हैं ना !
उनकी जिन्दगी राख़ की ढेर पे
तपती हुई चिंगारी से
कम नहीं होती ।
जीना आसान नहीं होता
उन लम्हों को,
जिनमें दर्द जीत गया हो और,
हार गई हो तब्बसुम,
होठों की मर्यादा निभाते-निभाते.....
प्रीति मधुलिका
पटना बिहार