गीतिका : पंकज त्रिपाठी
प्यार की बारादरी में,
आज बस तनहाइयाँ हैं।
जिंदगी लाचार बैठी,
दस्तके रुसवाइयाँ हैं।
थी मिली छप्पन छुरी जो,
अस्त्र तिरपन भूल बैठी,
आज छत्तिस में बदलती,
तिरसठी नजदीकियां हैं।
प्रीत की बारहखड़ी से,
सीख लेना तुम ककहरा,
वन्दगी का व्याकरण तो,
बस नई मजबूरियाँ है।
जीत की आरावली
तुमको मुबारक हों अमीषा,
अब मुझे तो खोजनी बस
हार की गहराइयाँ हैं।
जा रहा नेपथ्य में मैं,
प्रश्न पत्रों को समेटे,
अब परीक्षा कौन देगा,
यह नई दुश्वारियां हैं।
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रचना : पंकज त्रिपाठी