★ जगत दर्शन साहित्य ★
◆ काव्य जगत ◆
😊परिवार😊 : सुनीता सिंह सरोवर
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वक्त बदला, भाव बदल गए,
टूट रहे परिवार, मनभाव बदल गए,
रिश्ते -नाते में नहीं पहले जैसे चाव,
अपनों से हुई दूरी, गैरों से हुआ लगाव,
महत्वाकांक्षा जो बढी, संस्कार गए भूल,
अपने लगे कांटे, पराये लगे फूल,
दुख -सुख सब मिल बांटे, यही परिवार का मूल,
सुंदर लगते हैं बगियाँ में, रंग-बिरंगे फूल,
निज अहम है बाटती, घर कुनबे परिवार,
अपने ही अपनों से, कर रहे तकरार,
जरा सबक लो कुरूक्षेत्र से, तनी जहाँ तलवार,
लोभ, मोह, लालच में, लुट गया परिवार,
गाँव, गली खामोश है, आंगन लगे उजाड़,
बंटा समूचा घर, दरवाजे दो फाड़,
रखों विश्वास रिश्तों में, मन में खिलेंगे फूल,
करो मिन्नते अपनों से, हटेंगे मन से धूल,
कहे सरोवर रोज ही, टूट रहें परिवार,
मनभेद ने खींच दी, आंगन में दीवार..
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सुनीता सिंह सरोवर
उमा नगर देवरिया (यूपी)