बेटा नहीं पर बेटी तो हूं! : प्रिया पाण्डेय ' रौशनी'
हर वक्त, हर रोज़, हर पहर,
लड़ाई खुद से ही हैं मेरी,
सच बतलाऊ तो लड़ती हूं हर रोज़ अपनो से,
मेरी पूरी ज़िंदगी लड़ाइयों पर टिकीं है,
मैं भी लेती हू सांसे,
पत्थर नही इंसान हूं,
मेरे कोमल से दिल तन पर,
हर रोज नए प्रहार किए जाते हैं,
हर किसी की ख्वाइश को पूरी करती हूं,
बेटा नहीं पर बेटी तो हूं।
मैं तेरे ऊपर कोई बोझ नहीं,
भविष्य हूं, क्यों मुझे अपने सपने को पूरा करने के लिए लड़ाई खुद से ही लड़नी पड़ती,
खुद से हूं जो डरी -डरी, खुद से हूं खफा-खफा ,
हारी हूं मैं खुद से की दफा
बेटा नहीं बेटी तो हूं।
संपादिका जगत दर्शन साहित्य