राष्ट्र की माता गौ माता और भूकंप
रामचरित मानसः जब जब गाय को मिलता है कष्ट, तब तब आते हैं ऐसे भूकंप
अनेक ग्रंथों में जिक्र आता है कि जब धरती पर पाप बढ़ने लगता है तो उसमें कंपन होने लगता है। जहां शुभ काम होते हैं, वहां धरती ही नहीं बल्कि परमात्मा भी प्रसन्न रहते हैं।विज्ञान के मुताबिक पृथ्वी की आंतरिक हलचल के कारण भूकंप आते हैं। प्राचीन ऋषियों, विद्वानों ने भी अनेक ग्रंथों में धरती के कंपन का उल्लेख किया है। कहते हैं कि जब राम-रावण का युद्ध हुआ, कुरुक्षेत्र में रण का आगाज हुआ तो भूमि डोलने लगी थी। भूमि का डोलना शुभ नहीं माना जाता।
ऐसा अनेक ग्रंथों में जिक्र आता है कि जब धरती पर पाप बढ़ने लगता है तो उसमें कंपन होने लगता है। पौराणिक मान्यता है कि जहां शुभ काम होते हैं, जहां के लोग परोपकार करते हैं, बुरे कामों से दूर रहते हैं, जहां शराब, जुआ, लालच जैसी बुराइयां नहीं होतीं, वहां के लोगों से धरती ही नहीं बल्कि परमात्मा भी प्रसन्न रहते हैं।
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इसके अलावा जहां गौ को कष्ट दिया जाता है,वहां लोग लोभ, जुआ, लालच, शराब, ब्याज, अनैतिकता, व्यभिचार जैसे दुर्गुणों में लिप्त रहते हैं, वहां धरती डोलती है।
रामचरित मानस में कहा गया है -
भूकंप कहे गाइ की गाथा।
कांपे धरा त्रास अति जाता।।
जा दिन धरा धेनु न होई।
रसा रसातल ता छन होई।।
भावार्थ- भूकंप गाय की दुखमय गाथा ही गा रहा है। जब गौ माता को बहुत कष्ट होता है, तभी पृथ्वी कांपती है। जिस दिन इस धरती पर गाय नहीं होगी, उसी दिन ये धरती रसातल में चली जाएगी।
सुखी धेनु सत जुगहि बसाई।
दुखी काल कलि दियो बनाई।।
मृत भइ संस्कृति जीवित कीजो।
सत सत गुरदच्छिन सोइ दीज्यो।।
भावार्थ- जब भी गौ माता सुखी होती है तो धरती पर सतयुग आ जाता है। जहां गौ माता दुखी होती है वहां कलियुग आ ही जाता है। मरी हुई संस्कृति को जीवित करना ही सच्ची गुरु दक्षिणा माना गाया है।
सनातन मान्यता के अनुसार, गाय में सभी देवी देवता वास करते हैं। अतः गाय का पूजन, उसकी सेवा तथा बुराइयों से दूर रहने, परोपकार से ही सुख, सौभाग्य और सुरक्षित जीवन की प्राप्ति हो सकती है,
श्री सुरभ्यै नमः
प्रिया पाण्डेय रोशनी
संपादिका
जगत दर्शन साहित्य