बेटियाँ , नही कोई बोझ"
कोई बोझ ना हूं मैं !!!
किसी को तंग ना करूंगी
हर रीति-रिवाजों में ढल जाऊंगी
मेरे सपनों की बलि ना चड़ाओ तुम
मुझे पढ़ने दो ...
इस शादी नाम के अनचाहे बन्धन में
बेवक्त न बांधो तुम...
मेरे सपनों को जीने दो मुझे ,,
थोड़ी उड़ान उची भरने दो मुझे ....
चिंता ना करो दहेज़ के नाम पर
या उटपटांग चीजों का बोज ना बनूंगी मैं....
बेटा बनकर साथ निभाऊंगी मैं ...
तुम्हारा सहारा बनूंगी मैं
एक नई पीढ़ी को जन्म दूंगी
सारी तकलीफ़ सेह लूंगी मैं
इस जहां में जी लूंगी मैं
बस एक बार दुनियां में आने तो दो मुझे
पलकों के झरोखे से
इस दुनिया को देखने तो दो मुझे
कोई बोझ नहीं हूं मैं तुम्हारी तरह इन्सान ही हूं !!..
मुझे भी जीने दो ,
यह दुनियां देखने का हक़ तो दो ज़रा
कोक में ना मारो मुझे
जीने दो मुझे ,जीने दो!!!
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
(संपादन: प्रिया पांडेय)