आज इस संसार जगत में एक नई संस्कृति ने जन्म लिया है , हड़प संस्कृति। एक भाई दूसरे भाई के साथ राजनीति खेल कर अपने ही परिवार के साथ हड़प का खेल रच रहा है। धन दौलत के लिए रिश्ते नाते सब खाक हो गए है। एक भाई दूसरे के जान के पीछे लगा हुआ है। वहीं जब दूसरा भाई नेक हो और सब कुछ प्रेम से त्याग की भावना रखता हो तब किस प्रकार से पंच भी मुह लटका लेते है, उसी की एक झलक अपने कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहे है बिनय कुमार भारतीय। इस पोर्टल पर उनकी यह पहली रचना प्रकशित है।आएं इनकी बातों को समझने की कोशिश करते है।
हड़प संस्कृति
धन मिले तो सब मिले
मिले चोर से चोर।
लालच में दुश्मन भला
बनियो चितचोर।।
हड़प संस्कृति की करिए
रिश्ते नाते खाक।
साथ दिहेन जो उनके खातिर
भई बजत रहत नाक।।
हो पंचायत लेन देन के
भारी सारी बाजार में।
लाज बजावत पंच परमेश्वर
एके बेयार के आड़ में।।
दोऊ के बीच एक कहस
हम सबकर मालिक।
दूजा आय कह चला
खुश रहे हमर मालिक।।
पंच सरपंच अब लग रह
पड़ी फेर के फंद।
बात साफ हो गयो गरीब मे
दान दियो हरिश्चन्द।।
बनै हितकारी वोटबैंक
नीति नमन जाए भाड़।
धन पूजरा सब एक साथ
धन लुटरा के आड़।।
का धन धन धन करते
जब मन न मिले शांत।
जो मिलै तोहरा प्रेम से
साग पात का पात।।
धन बनैत चोर नजर
केकरो से मिलै नजर।
नजर न नजर बने
पड़े रब कु नजर।।
■ बिनय कुमार भारतीय
प्रधान संपादक
जगत दर्शन न्यूज़