■■■■■ पानी ■■■■■
कुछ पानी बिन हैं मरे , कुछ पानी से भाय।
कुछ का पानी है मरा , गाथा कही न जाय।।
कहीं पानी पानी रहे , कहीं है इज्जत जान ।
कहीं बना ईमान ये , समझो ऐ इंसान।।
देह जवानी है पानी , आंखों में है लाज।
चेहरे का है नूर ये , जाने सकल समाज।।
कुछ पानी पीते सदा , कुछ जीते हैं लोग।
कुछ पानी है बेचते , बना अजब संयोग।।
जा तन पानी है मरा , मरा हुआ है जान ।
कहे बिजेंद्र अपनी सदा , तू पानी पहचान।।
बिन पानी सब सून है , क्या मानव क्या और।
बिन पानी किसको यहाँ , मिलती सच्ची ठौर।।
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बिजेन्द्र कुमार तिवारी
(बिजेंदर बाबू)
संपादक ( साहित्य )
भोजपुरी रोजाना
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