★■■■■ कलम ■■■■★
फिदरत तो मेरी चाँद
को छूने की थी ,
पर छू ना सका
चाँद को बहुत दूर
है यारों
छूने को कौन कहें
मैं पहुँच भी ना सका
देखा है मैंने कवियों को
चाँद को कौन कहें
सितारें भी तोड़ लातें हैं
कलम वह तलवार हैं
किसी की दाँत तोड़ दें
बूढ़ों को जवानी ला दें
पानी में भी आग लगा दें
कलम की ताकत को
कभी मत तौलो यारों
शाँत सा माहौल में भी
क्रांति ला दें
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◆ अजय सिंह अजनवी