◆तुम और तुम्हारा गुस्सा◆
सुनो दूर से इतना गुस्सा,
पास आकर तो खा ही जाओगे
इतना ही कहा था ना !
इसमें ऐसी कौन-सी
चरित्रहीनता वाली बात कह दी मैंने ।
जानते हो मैंने GOOGLE BABA से भी
जानने की बहुत कोशिश की
पर उन्होंने तो जैसे,
मुँह पर ताला ही मार लिया हो
मजाल है कि वो मुँह खोलें अपना ।
मैंने सारे तिकरम अजमा लिए,
पर जवाब नहीं मिला और हासिल हुआ शून्य ।
लगता है GOOGLE BABA ने कभी,
'प्रीत' की परिधि नहीं नापी
तो जवाब क्या देंते और तुम हो कि,
छोटी सी बात को लेकर बैठ गए ।
ऐसी बातों पर भी कोई नाराज़ होता है भला !
महबूबा हूँ इसका मतलब ये तो नहीं
किसी भी बात पर नाराज़ हो जाओ तुम
और मैं मनाती रहूँ ।
नाराज़ तो मुझे होना चाहिए था
पूरे दस दिन तुमनें मेरी ख़बर तक ना ली
जानते थे ना ! मैं बीमार हूँ
फ़िर भी नजरअंदाज किया मुझे ।
मैं समझती रही काम में व्यस्त हो
पर यहाँ तो खिड़की पक रही थी 'मधु' के वास्ते ।
अब पकाया है तो ख़ुद ही खाओ चटकारे लेकर ।
हाँ गर,चटनी की ज़रूरत हो तो,
बताना जरूर क्योंकि,
कुछ बनाने आए या ना आए
चटनी काफ़ी अच्छा बना लेती है तुम्हारी 'मधु'
तुम्हें तुम्हारी ही चटनी बनाकर दूँगी
अँगुलियाँ चाटते रह जाओगे ।
हाँ एक बात और कान खोकर सुन लो
आज के बाद अपनें गुस्से को छुट्टी पर भेज देना
क्योंकि,मैं जब रूठकर जाऊँगी ना !
तो,सिर्फ तुम्हारी नज़रो से ही दूर नहीं
तुम्हारी दुनियाँ से भी दूर चली जाऊँगी,
कभी ना वापस आने के लिए,
फ़िर खेलते रहना आँख मिचौली,
तुम और तुम्हारा गुस्सा हुम्म..........
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प्रीति मधुलिका
पटना बिहार