हमारी बात भी सुनो
महाराष्ट्र के मतदाता संयम और विवेक से काम लें
✍️डॉ. कविता परिहार, बेसा, नागपुर
चुनाव करीब आ रहे हैं, फिर भी मतदाता उदासीन और मौन से हैं। कारण, सभी परिस्थितियां सामने हैं। अब कोई भी प्रतिनिधि मतदाता को लॉलीपॉप नहीं दे सकता, क्योंकि दिन-प्रतिदिन मतदाता जागरूक होते जा रहे हैं। मतदाताओं से अनुरोध है कि वे विवेक और संयम से काम लें और ऐसे उम्मीदवार का चयन करें जो जनहित में कार्य कर सके, जिसकी छवि स्वच्छ हो, समाज सेवक हो। जात-पात के आधार पर मतदान न करें, क्योंकि हमें किसी विशेष वर्ग का नहीं, अपितु पूरे देश का भला करना है। मतदान अवश्य करें। दिनों-दिन मतदान का प्रतिशत कम होते जा रहा है, इसका मूल कारण है कि चुनाव के बाद उम्मीदवार सिर्फ अपना घर भरते हैं और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं, तथा आम नागरिक की कोई सुनवाई नहीं होती।
जब कभी मैं पास-पड़ोस में पूछ बैठती हूं—आपको क्या लगता है, इस बार कौन जीतेगा?—तो बस यही सुनने को मिलता है, “हमें क्या, कोई जीते या कोई हारे, हमें क्या फायदा? मैंने तो वोट ही डालना छोड़ दिया है।” इतनी चिलचिलाती धूप में, कड़कड़ाती ठंड में घर के काम-धंधे छोड़कर अपना पेट्रोल-पानी जलाकर घंटे भर लाइन में लगकर मतदान करो, और जब काम पड़ता है और उनके घर जाओ तो सुनने को मिलता है—“मैडम नहीं हैं, साहब नहीं हैं।” चुनाव जीतते ही ये ‘सर’ और ‘मैडम’ बन जाते हैं। बाद में चक्कर लगाते-लगाते व्यक्ति थककर चुप बैठ जाता है। इसी कारण अब मुझे इन चुनावों में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है।
सभी मतदाताओं से मेरा अनुरोध है कि आने वाले 2 दिसंबर को वे अपने मौलिक अधिकार का अवश्य प्रयोग करें। एक-एक मत सही निर्णय लेने में सहायक होता है।

