"शूर्पणखा: एक दृष्टि" का भव्य लोकार्पण संपन्न, लेखिका रति चौबे को मिला स्वयंसिद्धा सम्मान
नागपुर (महाराष्ट्र): श्रीमती रति चौबे द्वारा रचित विशिष्ट साहित्यिक कृति "शूर्पणखा: एक दृष्टि" का लोकार्पण एक भव्य समारोह में संपन्न हुआ। इस अवसर पर देशभर से आए विद्वानों, साहित्यकारों और कलाकारों की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की।
अध्यक्षीय आसंदी से प्रसिद्ध विद्वान डाॅ. वेदप्रकाश मिश्रा ने शूर्पणखा और कैकेयी के चरित्रों का तार्किक विश्लेषण करते हुए कहा कि प्रभु श्रीराम की व्यापक आराधना के पीछे इन दोनों पात्रों का परोक्ष योगदान रहा है। उन्होंने रचना के मूल भाव को ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण से जोड़ा।
लेखिका रति चौबे ने अपनी प्रेरणा के स्रोत और शूर्पणखा से जुड़े स्वप्न संवादों को भावपूर्ण ढंग से साझा करते हुए बताया कि किस प्रकार यह उपेक्षित पात्र उनके सृजन का केंद्र बना। समारोह के प्रमुख अतिथि डाॅ. सागर खादीवाला ने रति चौबे की सृजन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए उनके प्रयास की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
विशेष अतिथि श्रीमती पूर्णिमा पाटिल ने कृति में प्रयुक्त संदर्भ ग्रंथों, जनश्रुतियों और लेखिका की सूक्ष्म विवेचना का उल्लेख करते हुए उनके गहन अध्ययन की सराहना की। वहीं श्रीमती इंदिरा किसलय ने कृति के रोमांचक प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनकी आगामी रचना "हिडिंबा" के लिए शुभकामनाएं दीं।
दुबई से जुड़े डाॅ. रवि शुक्ला ने "शूर्पणखा" के विषय को वर्तमान सामाजिक और नारी विमर्श से जोड़ते हुए ओजस्वी वक्तव्य दिया। कार्यक्रम में प्रसिद्ध चित्रकार सुभाष शर्मा द्वारा रचित पुस्तक का मुखपृष्ठ विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।
दीप प्रज्वलन और रेखा तिवारी द्वारा प्रस्तुत मधुर सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इसके बाद सभी अतिथियों का भावभीना स्वागत-सत्कार स्मृतिचिह्न देकर किया गया। कार्यक्रम पूर्व श्रीमती रश्मि मिश्रा के एकल अभिनय "शूर्पणखा" की भूमिका को मंच पर जीवंत कर देने वाला रहा, जिसने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
इस अवसर पर हिन्दी महिला समिति की ओर से कार्याध्यक्ष डा. चित्रा तूर एवं उपाध्यक्ष रेखा पाण्डेय ने लेखिका रति चौबे को स्वयंसिद्धा सम्मान (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. दीनदयाल एवं स्व. दयालिनी गुप्ता स्मृति) प्रदान किया। साथ ही उत्कर्ष बहुउद्देशीय संस्था की ओर से डा. कविता परिहार तथा चर्चित कवि जयप्रकाश शर्मा ने भी लेखिका का सम्मान किया।
सभी विद्वानों ने "शूर्पणखा" को शोधपरक कृति बताते हुए इसे साहित्य और नारी विमर्श के लिए महत्वपूर्ण बताया और पाठकों से इसे अवश्य पढ़ने की अपील की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन साहित्यकार एवं प्रकाशक अविनाश बागड़े ने किया। आभार प्रदर्शन प्रसिद्ध व्यंग्यकार अनिल मालोकर ने किया।
इस गरिमामयी अवसर पर उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों में सत्येंद्र प्रसाद सिंह, राकेश गुप्ता, सी. डी. शिवनकर, श्रीकृष्ण नागपाल, रामकृष्ण सहस्रबुद्धे, प्रकाश कांबले, टीकाराम साहू आज़ाद, अजय पांडे, बाबाराव कांबले, स्वर्णिमा सिन्हा, प्रभा मेहता, रूबी दास, रामेश्वर बंग, देवयानी बैनर्जी, डा. कृष्णा श्रीवास्तव, हेमलता मिश्रा, माधुरी राउलकर, पूनम हिंदुस्तानी, सुजाता दुबे, किरण हटवार, उमा हरगन, रश्मि अवस्थी, सुनिधि जायसवाल, नैनका चौबे, रेखा चतुर्वेदी, छवि चक्रवर्ती, इंदिरा चौहान, संगीता बैस, सुनिता शर्मा, रेशम मदान, मीना तिवारी, पूनम मिश्रा, अनिता गायकवाड़, छाया चौधरी आदि शामिल रहीं।
समारोह की विविधता, गंभीरता और भावनात्मकता ने इसे एक ऐतिहासिक साहित्यिक क्षण में परिवर्तित कर दिया।