युवा सोच, समाज सेवा और बदलाव का प्रण: निशिकांत सिन्हा की जन आशीर्वाद यात्रा!
• बिहार के औद्योगिक और सामाजिक पिछड़ेपन को मिटाकर युवाओं के सपनों को जमीन देने निकले निशिकांत सिन्हा
• समाज सेवा को बनाया अपना मिशन
पटना (बिहार): बदलाव की शुरुआत तब होती है जब कोई इंसान न केवल समस्याओं को देखता है, बल्कि उनका समाधान भी खुद में ढूंढता है। निशिकांत सिन्हा ऐसे ही एक युवा हैं, जिन्होंने बिहार की सामाजिक, शैक्षणिक और औद्योगिक दुर्दशा से आहत होकर ‘जन आशीर्वाद पार्टी’ के गठन की घोषणा की है। उनका सपना है एक सशक्त, समावेशी और तकनीक-संगत बिहार का, जहाँ दलित, शोषित, वंचित और बेरोजगार युवाओं को उनका हक मिले, और राज्य खुद पर गर्व कर सके। वे राजनीति को सेवा का माध्यम मानते हैं, सत्ता का साधन नहीं। उनके भीतर एक भावुक कार्यकर्ता, संवेदनशील समाजसेवी और दूरदृष्टि वाला नीति निर्माता समाया है। निशिकांत का मानना है कि जब तक नेतृत्व ज़मीन से नहीं जुड़ेगा, तब तक बिहार जैसा राज्य विकास की रफ्तार नहीं पकड़ सकता।
निशिकांत सिन्हा बिहार के उज्ज्वल भविष्य की अपार संभावना की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं कि- "मैं बदलाव का वाहक बनना चाहता हूँ, केवल वादों से नहीं बल्कि ज़मीन पर उतरकर काम करने से। बिहार के युवाओं को उनके घर में ही अवसर चाहिए, न कि दूसरे राज्यों की खाक छानने की मजबूरी। आज हमारी राजनीति नतीजों पर नहीं, नारों पर चल रही है। मैं इसे उलटने का प्रण लेकर निकला हूँ।"
शिक्षा और बेटियों के लिए समर्पित जीवन
निशिकांत का अब तक का सफ़र केवल भाषणों और घोषणाओं तक सीमित नहीं रहा है। पिछले पाँच वर्षों में वे हर साल 25-30 छात्र एवं छात्राओं को गोद लेकर उनकी शिक्षा, रहन-सहन और करियर निर्माण में आर्थिक सहयोग देते आए हैं। उन्होंने नवादा एवं गया स्थित कई छात्रावासों को आर्थिक सहायता प्रदान कर छात्रों एवं छात्राओं के लिए गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई का मार्ग प्रशस्त किया। निशिकांत सिन्हा ने ज़रूरतमंद बेटियों की शादियों में आर्थिक सहयोग देकर न केवल परिवारों का संबल बढ़ाया, बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारी का भी उदाहरण प्रस्तुत किया है।
निशिकांत सिन्हा इसी पहल पर जोर देते हुए कहते हैं कि -"एक बच्ची पढ़ती है तो पूरा समाज रोशनी पाता है। आज जब बेटियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि उनके रास्ते की हर आर्थिक और सामाजिक रुकावट को दूर करें। मैंने यही कोशिश की है कि बेटियों के सपनों को उड़ान मिले – बिना किसी बोझ या डर के।"
आय का 70% हिस्सा से अधिक समाज सेवा में:
आज जहां राजनीति में निजी लाभ प्राथमिकता बन चुकी है, वहीं निशिकांत सिन्हा अपनी आय का 70 से 80 प्रतिशत हिस्सा समाज सेवा पर खर्च करते हैं। यह उनके जीवन का मूल दर्शन है कि संसाधनों का सही उपयोग तभी है, जब वे जरूरतमंदों की ज़िंदगी बदलें। वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का आभास करते हुये बताते हैं कि- "समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है, अब मेरी जिम्मेदारी है लौटाने की। पैसा तब तक सार्थक नहीं जब तक वह किसी की ज़रूरत नहीं पूरी करता। मेरा मानना है कि एक नेता का असली काम सिर्फ नीतियाँ बनाना नहीं, बल्कि ज़रूरतमंद तक मदद पहुँचना भी है।"
औद्योगिक पिछड़ापन और रोजगार पलायन से बेचैनी:
निशिकांत बिहार की औद्योगिक बदहाली से चिन्तित होकर कहते हैं कि बिहार में हुनर की कोई कमी नहीं, लेकिन उसे दिशा और मंच नहीं मिलता। जब तक हम खुद उद्योग नहीं लगाएंगे, स्टार्टअप को प्रोत्साहन नहीं देंगे, पलायन नहीं रुकेगा। मेरा सपना है कि लोग बिहार छोड़कर नौकरी खोजने न जाएं, बल्कि दूसरे राज्य के लोग यहां आकर काम करें। बिहार की औद्योगिक असफ़लता एवं चुनौतयों पर जोर देते हुए वह कहते हैं कि बिहार की बदहाल औद्योगिक स्थिति किसी से छुपी नहीं है। बिहार सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, राज्य के GSDP में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 2021-22 में 9.9% से घटकर 2023-24 में 7.6% हो गया है। चालू कारखानों की संख्या 2013-14 में 3,132 से गिरकर 2022-23 में मात्र 2,782 रह गई। केयर एज एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि राजकोषीय स्थिति, निवेश, और बैंकिंग सेवाओं के मामले में बिहार सबसे निचले पायदान पर है।
पलायन रोकने का रोडमैप: स्किल सेंटर और जिला-स्तरीय रोजगार:
निशिकांत का मानना है कि जब तक जिला स्तर पर लोगों को शिक्षा और रोजगार नहीं मिलेगा, तब तक बिहार पलायन का दंश झेलता रहेगा। उनका लक्ष्य है कि प्रत्येक ज़िले में मेगा स्किल सेंटर की स्थापना,तकनीकी कॉलेज और स्कूलों का निर्माण,स्टार्टअप और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना एवं 'ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस' सुधारों को ज़मीन पर लागू करना। निशिकांत सिन्हा रोडमैप पर अपनी बात रखते हुये कहते हैं कि हमारे युवा बाहर जाते हैं, वहां नाम कमाते हैं, पर दुख इस बात का है कि बिहार को उनका हुनर नहीं मिल पाता। मेरी नीति स्पष्ट है— हर ज़िले को एक मिनी-इंडस्ट्रियल जोन बनाना, जिससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार पैदा हो।
कुशवाहा समाज को न्याय और हिस्सेदारी दिलाने का प्रण:
निशिकांत सिन्हा का यह भी मानना है कि कुशवाहा समाज की भागीदारी राजनीतिक रूप से सीमित रखी गई है, जबकि वह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से अपनी हिस्सेदारी का पूरा हकदार है। निशिकांत सिन्हा कुशवाहा समाज की पीडा पर बात करते हुये कहते हैं कि समाज तभी आगे बढ़ेगा जब हर वर्ग को उसकी आबादी के अनुसार भागीदारी मिले। कुशवाहा समाज मेहनती है, जागरूक है, लेकिन उसे बार-बार हाशिए पर रखा गया। मेरा प्रयास रहेगा कि इस समाज को वह सम्मान और स्थान मिले, जिसका वह हकदार है।
बिहार की बीमारी का इलाज है : युवा सोच और नीतिगत क्रांति
निशिकांत बिहार की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि बिहार देश के ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में 26 वें स्थान पर है और देश के 17 बड़े राज्यों में वित्तीय स्थिति में सबसे नीचे है। देश की कुल क्रियाशील औद्योगिक इकाइयों का सिर्फ 1.34% बिहार में है। केयर एज एजेंसी की कंपोज़िट रैंकिंग में बिहार को 17 में से सबसे कम 34.8 अंक मिले हैं। बिहार बीमार है, लेकिन यह लाइलाज नहीं है। हमें सिर्फ नीयत साफ़ करनी है और नीति मजबूत। जो लोग सिर्फ भाषणों से बदलाव लाना चाहते हैं, उन्हें ज़मीन की हकीकत समझनी चाहिए। हमारी पार्टी इसी सोच को चुनौती देने के लिए बनी है।