भोजपुरी के सुप्रसिद्ध गीतकार शिवानंद मिश्र ‘शिकारी’ का निधन!
‘हमार बुझाता बबुआ डीएम होइहे...’ जैसे लोकप्रिय गीत के रचयिता रहे!
/// जगत दर्शन न्यूज
भोजपुरी साहित्य और लोकगीत जगत को गहरा आघात पहुँचा है। सुप्रसिद्ध गीतकार, लेखक और भोजपुरी के संवेदनशील रचनाकार शिवानंद मिश्र 'शिकारी' का हृदयगति रुकने से निधन हो गया। वे गुजरात के गांधीधाम स्थित केंद्रीय विद्यालय में कार्यरत थे, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली। मूल रूप से बिहार के भोजपुर जिला अंतर्गत परसौड़ा टोला गाँव निवासी शिकारी जी की रचनाएं लोकधुनों की आत्मा में रची-बसी थीं।
शिवानंद मिश्र शिकारी का नाम उस वक्त चर्चा में आया जब उनका लिखा सोहर गीत – ‘हमार बुझाता बबुआ डीएम होइहे...’ सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कथा वाचक राजन जी महाराज के प्रवचन में गाए जाने के बाद यह गीत आमजन के दिलों में बस गया। मूल रूप से इस गीत को प्रसिद्ध लोकगायिका स्व. गायत्री ठाकुर ने गाया था, जिसमें परंपरागत भोजपुरिया धुनों, झाल, ढोलक और बैंजो की सजीव संगत थी।
शिकारी जी की लेखनी केवल सोहर तक सीमित नहीं रही। उन्होंने निर्गुण, कजरी, देवी गीत, प्रसंग आधारित भक्ति रचनाएं और सामाजिक संदेश से भरे गीतों की भी रचना की। उनके द्वारा लिखित प्रसिद्ध निर्गुण ‘झर-झर नयनवा बही, थर-थर बदनवा चुई...’ को जियालाल ठाकुर ने स्वर दिया, वहीं कजरी ‘भोला भावे भांग के गोला...’ राजन जी महाराज के स्वर में लोकप्रिय हुआ।
उन्होंने लड़कियों के जन्म पर भी उत्सवधर्मी सोहर लिखा – ‘बास जिन्ह करेली क्षीरसागर...’ जो स्त्री सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहल मानी जाती है। उनका भिखारी ठाकुर पर लिखा गीत ‘मन पारेले शिकारी आज भिखारी के...’ भोजपुरी के महान लोक कलाकारों को नई पीढ़ी से जोड़ने वाला सेतु है।
उनके गीतों को श्री भरत शर्मा व्यास, श्री गोलू राजा, सुश्री गौरांगी गौरी, श्री जियालाल ठाकुर जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज दी है। साहित्य और लोकगीतों में उनकी गहरी पकड़ और मौलिक दृष्टिकोण ने उन्हें भोजपुरी भाषा का एक विशिष्ट हस्ताक्षर बनाया।
उनके असमय निधन से भोजपुरी साहित्य और लोकसंस्कृति को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके शब्द, धुन और लोक भावना से भरे गीत हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगे। साहित्य जगत और उनके चाहने वालों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।