स्कंदमाता की मंत्रोचारण से हुई पूजा अर्चना, गूंजा गूंजा वातावरण!
सारण (बिहार) संवाददाता सत्येन्द्र कुमार शर्मा: नवरात्र के पांचवें दिन आज भक्तों द्वारा स्कन्द माता के मंत्रोच्चार से सहाजितपुर, मानोपाली, मेढ़ुका आदि दूर्गा पूजा स्थलों पर गुंजा साथ ही परंपरागत पूजा अर्चना ध्वनि विस्तारक यंत्र से उसका प्रसार की गई।
" वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्।।"
"धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्। अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥"
"पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्। मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥"
"प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्। कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥" आदि मंत्र पूजा स्थल पर गुंजने लगा।
माँ दुर्गा का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता के रुप में पूजन किया जाता हैं। मॉं के स्वरूप में स्कंदमाता की साधना की जाती हैं। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी कहा जाता है।और इनकी माता के रूप में देवी के स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
स्कन्दमाता का वाहन सिंह है। उनकी गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान है। माता का यह अवतार चतुर्भुजा अर्थात चार भुजाओं वाला है। अपने ऊपर के दो हाथों में माता ने कमल का फूल धारण किया हुआ है। एक हाथ से उन्होंने भगवान कार्तिकेय को संभाला हुआ है, और शेष एक हाथ अभय मुद्रा में है, जिससे माँ अपने सभी भक्तगणों को अभय का आशीष दे रही हैं।
स्कंदमाता की पूजा करने से साधकों को भगवान कार्तिकेय के समान तेजस्वी संतान की प्राप्ति होता है। स्कंदमाता बहुत ही करुणामयी हैं, और वे अपने भक्तों से हुई हर त्रुटि के लिए उन्हें क्षमादान देती हैं। माँ की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद स्वतः ही साधकों को मिल जाता है।स्कंदमाता को लाल रंग अतिप्रिय है और प्रत्येक शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा के लिए शुभ रंग अलग-अलग ही होता है।
" सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्वितकाद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।" उक्त मंत्र के मुताबिक स्कंदमाता का वाहन सिंह है।उनकी गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान हैं। मॉं अपने अभय मुद्रा में अभय आशीष देती हैं।