आयुष्मान भारत योजना के तहत प्राइवेट अस्पतालों में भी होगा हाईड्रोसील के मरीजों का सर्जरी!
• मार्च 2025 तक सभी हाईड्रोसील के मरीजों का आपॅरेशन करने का लक्ष्य निर्धारित• कैंप मोड में जिले में किया जायेगा ऑपरेशन• नि:शुल्क एंबुलेंस और दवा की सुविधा उपलब्ध• सारण में 1163 हाईड्रोसील के मरीज
सारण (बिहार): जिले के सभी हाइड्रोसील मरीजों का मार्च 2025 तक ऑपरेशन करने का लक्ष्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित किया गया है। इसको लेकर अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, फ़ाइलेरिया डॉ. परमेश्वर प्रसाद ने राज्य के सभी सिविल सर्जन को पत्र जारी कर तय समय के अंदर उक्त लक्ष्य को प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है। जारी पत्र में बताया गया है कि राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक में स्वास्थ्य मंत्री द्वारा हाइड्रोसील मरीजों के ऑपरेशन का बैकलॉग मार्च 2025 तक समाप्त करने का निर्देश दिया गया है। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि सारण जिले में 1163 हाईड्रोसील के मरीज है। जिनका ऑपरेशन किया जाना है। राज्य स्तर से प्रतिमाह 194 मरीजों का सर्जरी करने का लक्ष्य दिया गया है। लक्ष्य को शत-प्रतिशत हासिल करने के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। राज्य में 17,863 हाइड्रोसील के केस हैं। राज्य में प्रति माह 2977 हाइड्रोसील मरीजों के ऑपरेशन का लक्ष्य रखा गया है। विदित हो कि हाइड्रोसील मरीजों के ऑपरेशन के लिए उन्हें एम्बुलेंस की सुविधा प्रदान की जाती है एवं ऑपरेशन के उपरांत उन्हें दवा नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाती है।
कैंप मोड में किया जायेगा ऑपरेशन:
जारी पत्र में बताया गया है कि शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्ति के लिए जिला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, रेफरल हॉस्पिटल, जिला एवं अनुमंडलीय हॉस्पिटल तथा जिले में अवस्थित मेडिकल कॉलेज में प्रक्रिया का पालन करते हुए कैंप मोड पर शल्य चिकित्सा शिविर लगाकर लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित किया जाए। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत प्राइवेट हॉस्पिटल में भी हाइड्रोसील मरीजों का ऑपरेशन करने के लिय प्रोत्साहित करते हुए वहां किये गए ऑपरेशन के आंकड़ों को भी जिला की संख्या में शामिल करें। इस कार्यक्रम के सफल संचालन एवं जनमानस में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए प्रचार प्रसार एवं मोबिलाईजेशन पर ध्यान देते हुए मार्च 2025 तक शत-प्रतिशत लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करें।
दो प्रकार का होता है हाइड्रोसील:
सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि हाइड्रोसील मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। जिसमें पहला कम्युनिकेटिव जबकिं दूसरा नॉन कम्युनिकेटिव हाइड्रोसील शामिल हैं। कम्युनिकेटिव हाइड्रोसील होने पर अंडकोष की थैली पूर्ण रूप से बंद नहीं होती है और इसमें सूजन एवं दर्द होता है। हर्निया से पीड़ित मरीज में कम्युनिकेटिव हाइड्रोसील का खतरा अधिक होता है। वहीं नॉन कम्युनिकेटिव हाइड्रोसील में अंडकोष की थैली बंद होती है और बचा हुआ द्रव शरीर में जमा हो जाता है। इस प्रकार का हाइड्रोसील नवजात शिशुओं में अधिक देखने को मिलता है और कुछ समय के अंदर यह अपने आप ही ठीक हो जाता है।