कहानी
/// जगत दर्शन न्यूज
यादों की आईने में प्रेम का झरना!
✍️राजीव कुमार झा (एम.ए.)
सुकुमार को बाल्यावस्था से ही साहित्य संस्कृति और कला से प्रेम का भाव विरासत में अपने पिता से प्राप्त हुआ है और आधुनिक संस्कारों के प्रभाव में वह दिल्ली में अपनी पढ़ाई - लिखाई के दौरान तब आया जब से अंजू से उसकी दोस्ती हुई और और वह उसके फ्लैट पर आने - जाने लगी । उन दिनों सही मायनों में उसका कालेज आना - जाना भी छूट चुका था और नोयडा में किसी कंपनी में इंजीनियर के रूप में वह काम करने लगा था और एक - दो दोस्तों को छोड़कर कालेज के सारे संगी साथियों का साथ भी तकरीबन खत्म हो चुका था। उन्हीं दिनों अंजू से उसकी मुलाकात यहां हुई थी और वह उसके कालेज में कंप्यूटर एप्लिकेशन की छात्रा थी लेकिन यहां सुकुमार की अंजू से कभी कोई बातचीत नहीं हुई थी क्योंकि वह इस कालेज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और अमूमन दूसरे डिपार्टमेंट के लोगों से उसकी कोई बातचीत नहीं होती थी लेकिन दो तीन साल बीत जाने के बावजूद उस दिन नोयडा के उस रेस्तरां में अंजू ने उसे पहचान लिया था और थोड़े संकोच से ही लेकिन उसके टेबल के पास आकर अंजू ने उससे पूछा था कि क्या आप गुड़गांव के इंजीनियरिंग कॉलेज में कभी पढ़ाई किया करते थे और फिर उसने अपने बारे में उसे बताया था कि वह भी दूसरे डिपार्टमेंट में वहां पढ़ती थी और उसे रोज देखा करती थी । अंजू से उस दिन सुकुमार काफी देर तक बातें करता रहा था और फिर दोनों एक दूसरे का मोबाइल नंबर लेकर मुस्कुराते हुए फिर कभी भेंट मुलाकात का वायदा करके अलग हो गये थे।
सुकुमार फैक्ट्री से घर लौटने के बाद थोड़ी देर तक म्यूजिक सुनता है और न्यूज सुनने के बाद थोड़ी देर तक शराब सिगरेट पीने की आदत भी उसे लग गयी है और वह इसी समय हिंदी की साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं को भी पढ़ता है और कविताएं भी लिखा करता है। सुकुमार को यह सब करते हुए अक्सर ऐसा लगता है कि समाज और जीवन से इस दरम्यान वह एक विमर्श और संवाद की प्रक्रिया में संलग्न होता है और यह वक्त उसके सामने किसी आईने की तरह चमकता दिखाई देने लगता है। सुकुमार को कविता लेखन से कालेज के समय से ही लगाव रहा है और उसने वहां कई बार काव्य गोष्ठियों का भी आयोजन किया था और किसी दिन अंजू ने फोन पर उससे पूछा भी था कि क्या तुम अब भी कविताएं लिखते हो तो सुकुमार ने फिर उससे कहा था कि यह सब तुम्हें कैसे पता है तो उसने कभी कभार कालेज आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठियों को याद किया था और कहा था कि वह किसी वजह से कालेज में अनुपस्थित होने के कारण उसकी गोष्ठी में शरीक नहीं हो पायी थी और उसकी कविताओं के बारे में अपनी सहेली तरंग से उसने सुना था। तरंग शादी के बाद अमेरिका चली गयी थी और वहां से टूरिस्ट एक्जीक्यूटिव के तौर पर अपनी कंपनी के द्वारा भारत में आयोजित होने वाले टूरिस्ट दौरों में अब भी कभी कभार यहां आती रहती है। तरंग के बारे में अंजू ने सुकुमार को यह सब बताया था और कहा था कि वह जल्द ही भारत आने वाली है और फिर वह उससे उसे मिलवाएगी।
सुकुमार ने अंजू को अगले संडे अपने फ्लैट पर भी बुलाया था और कहा था कि यह दिन कविता सुनने और सुनाने के लिए ही होगा । यह सुनकर अंजू को हंसी आ गयी थी और उसने सुकुमार से पूछा था कि क्या इसके अलावा सारे दिन वह क्या और कुछ करना पसंद नहीं करेगा तो सुकुमार को भी हंसी आ गयी थी और उसने उसे कहा कि " ह्वाय नाट इट्स आल डिपेंड्स आन अस ...ह्वाट वी वांट टू डू... उस दिन अंजू सुकुमार की इन बातों को सुनकर हंसते-हंसते लोट-पोट हो गयी थी।
सुकुमार के बारे में तरंग ने अंजू को कई बार बताया था और उसकी कविताओं में समाहित हृदय और मन के सहज स्पंदन की चर्चा करते हुए उसने उसे यह भी कहा था कि कविता में आदमी के जीवन की सच्चाई को देखना जानना जितना सहज होता है यह उतना ही कठिन भी होता है और उन्हीं दिनों जब तरंग अमेरिका से दिल्ली आई थी तो अंजू ने तरंग को सुकुमार से मिलवाया था और इस दिन वह तरंग को लेकर सुकुमार के घर पर आयी थी । इसके बाद अंजू किसी से मिलने की बात कहकर थोड़ी देर के लिए बाहर चली गयी थी और सुकुमार तरंग से काफी देर तक बातें करत रहा और उसने तरंग से अमेरिका के बारे में काफी सारे सवालों को पूछा। तरंग ने वहां अपने पति से डायवोर्स के बारे में भी बताया और कहा कि वह अब किसी अच्छे इंसान से शादी करके फिर से नये जीवन की शुरुआत करना चाहती है। दिल्ली में तरंग अपनी मां के पास जब भी आती है तो डेढ़ दो महीने के बाद ही फिर उसका अमेरिका लौटना हो पाता है और इस बार उसने यहां अपना ज्यादातर वक्त सुकुमार के साथ ही व्यतीत किया। सुकुमार के बारे में तरंग ने अंजू को कई बार बताया या था और उसकी कविताओं में समाहित हृदय और मन के सहज स्पंदन की चर्चा करते हुए उसने उसे यह भी कहा था कि कविता में आदमी के जीवन की सच्चाई को देखना जानना जितना सहज होता है यह उतना ही कठिन भी होता है और उन्हीं दिनों जब तरंग अमेरिका से दिल्ली आई थी तो अंजू ने तरंग को सुकुमार से मिलवाया था और इस दिन वह तरंग को लेकर सुकुमार के घर पर आयी थी । इसके बाद अंजू किसी से मिलने की बात कहकर थोड़ी देर के लिए बाहर चली गयी थी और सुकुमार तरंग से काफी देर तक बातें करत रहा और उसने तरंग से अमेरिका के बारे में काफी सारे सवालों को पूछा। तरंग ने वहां अपने पति से डायवोर्स के बारे में भी बताया और कहा कि वह अब किसी अच्छे इंसान से शादी करके फिर से नये जीवन की शुरुआत करना चाहती है। दिल्ली में तरंग अपनी मां के पास जब भी आती है तो डेढ़ दो महीने के बाद ही फिर उसका अमेरिका लौटना हो पाता है और इस बार उसने यहां अपना ज्यादातर वक्त सुकुमार के साथ ही बिताया। वह रात में रोज मम्मी को कहकर शाम ढलते ही सुकुमार के पास आ जाती थी और उसकी कविताओं को सुनने के अलावा सुकुमार की अन्य दूसरी बातें भी उसे बेहद अच्छी लगती थीं । इस दौरान तरंग ने अंजू को भी यह सब बताया था और कहा था कि वह उसे बिल्कुल भी नहीं जानती है लेकिन जब तक दोनों साथ हैं तब तक इस दोस्ती की बातें झूठी नहीं कही जा सकती हैं । अमेरिका में पति से तलाक के बाद तरंग के लिए दोस्त ही उसके सबसे बड़े सहारे बन गये थे और वहां भारतीय लड़कों से उसकी दोस्ती बिल्कुल भी नहीं हो पाई थी और सन्नाटे से घिरे उसके मन में सुकुमार सुख, शांति और प्रेम के मीठे झोंकों की तरह आया था और अंजू ने भी इन दोनों को बिल्कुल एक दूसरे की बांहों में अकेला छोड़ दिया था और उसे लगता रहा कि शायद अकेलेपन से घिरे इन युगलों के जीवनतट पर जिंदगी की इस यात्रा में कभी किसी सुबह सूरज दिखाई दे और एक नये जीवन की शुरुआत हो । दो महीने के बाद तरंग अमेरिका जा रही थी और उसने सुकुमार को अपना कविता संग्रह प्रकाशित होने के बाद भेजने के लिए कहा था। हवाई अड्डे से लौटते हुए सुकुमार की सांसों में तरंग के सांसों की महक समाई हुई थी और उसने फैक्ट्री से साल भर के कार्य अनुबंध की समाप्ति के बाद तरंग को अमेरिका आने और फिर वहीं रहने की बात उसे कही थी और हवाई जहाज की खिड़कियों से नीले आसमान के नीचे उड़ते बादलों को निहारती हुई तरंग को अपना देश यहां सुकुमार जैसे उसके दोस्त याद आ रहे थे।
✍️राजीव कुमार झा
(इंदुपुर, पोस्ट - बड़हिया, जिला - लखीसराय, बिहार : 811302, ह्वाट्सएप नंबर:6206756085)