अंधेरे में गुम होती रात!
(कहानी)
/// जगत दर्शन साहित्य
✍️राजीव कुमार झा
अंधेरे में गुम होती रात!
शाम में उसे आकाश में ढलता सूरज उसे अक्सर ऐसा कहता प्रतीत होता है मानो वह सबको सुबह के बारे में कुछ कहकर अंधेरे में गुम हो रहा हो और अपने पास बुला रहा हो । संजय ने इसी तरह जिंदगी से कभी हार नहीं मानी थी और उसे इस शहर का अंधेरा रश्मि से दोस्ती के बाद अक्सर उससे होने वाली मुलाकातों में खत्म होता प्रतीत होता।
रश्मि से वह उसके फ्लैट पर सप्ताह में जरूर जाकर भेंट मुलाकात करता है और इस दिन रात में वह उसे अपने फ्लैट में ही रोक लेती है। उसे संजय के साथ कैरम खेलना भी पसंद है और शहर के इस अपार्टमेंट्स में ज्यादातर विभिन्न क्षेत्रों के इंडीपेंडेंट प्रोफेशनल्स एकल और युगल इन दोनों ही तरह के लोग सुकून से रहते हैं। यहां के लोगों को अपनी तरह के लोगों के इधर आने जाने पर कोई ऐतराज नहीं है और इस तरह यहां ज्यादातर आपसी जान पहचान के लोगों की आवाजाही रहती है। अपार्टमेंट्स में आने वाले लोगों में संजय को भी यहां के गेट सिक्योरिटी स्टाफ इसी रूप में जानते हैं और उन्हें और यहां के दूसरे लोगों को भी रश्मि और संजय की यह भेंट मुलाकात किसी प्रेम प्रसंग के अलावा और कुछ नहीं लगता है और इसे लेकर आम तौर पर किसी कहासुनी का कोई प्रचलन यहां नहीं है।
संजय इस महानगर के किसी साधारण मुहल्ले में रहता है और उसके बारे में रश्मि को सबकुछ पता है। वह वहां अभी तक नहीं गयी है और संजय के साथ अपने प्रेम प्रसंग की चर्चा को सुनकर भी वह खामोश बनी रही है। उसे वह अच्छे इंसान के रूप में जानती रही है और यह इस महानगर की जिंदगी में उसके लिए किसी बड़ी जरूरत की तरह से प्रतीत होने वाली बात है।
पिछले सात सालों से इस महानगर में संजय रह रहा था और रश्मि से उसकी दोस्ती के करीब साल भर हो चुके थे। संजय के बारे में उसने अपनी जान पहचान के लोगों को ज्यादा नहीं बताया था लेकिन इस अपार्टमेंट्स में उसके फ्लैट के आसपास के लोगों को इस दोस्ती के बारे में पता था और यहां एकल रहने वाले युवा स्त्री पुरुषों की जीवनचर्या की इन प्रचलित बातों से कभी किसी को कोई गुरेज नहीं रहा। रश्मि ने संजय के साथ अपने इस रिश्ते को सदैव सुखद दोस्ती के रूप में देखा और संजय के लिए वह उसके सपनों की रानी होकर भी कभी उसके मन में नहीं समा पा रही थी और रश्मि के लिए संजय के मन की यह दशा किसी सस्पेंस फिल्म के उस हिस्से की तरह थी जिसमें नायक और नायिका जिंदगी में एक - दूसरे के बीच से निरंतर गुजरते हुए भी सदैव अनजान बने रहते हैं और आज के दौर में रोज जारी होने वाले नये म्यूजिक एल्बमों के गीत संगीत में प्रस्फुटित होने वाले जिंदगी के ताल लय और सुर में खुद को जानने समझने की जिज्ञासा से परिपूर्ण रहते हैं।
अच्छी दोस्ती में सच्चे प्रेम की सुनाई देनेवाली यह आहट अब तक आकाश की नीलिमा में फैली शांत हवा के बीच अनंत चुप्पी में खोई रही और संजय ने रश्मि से कभी कुछ भी उसके बारे में कुछ पूछना जानना या अपने बारे में बताना जरूरी नहीं समझा और उसे इन सब के बारे में ऐसा लगता जैसे वह सबको अपने बारे में सबकुछ बताना उचित नहीं समझता हो। उसकी जिंदगी को केवल मानो रश्मि ही ठीक से जानती हो।
संजय ने कई बार रश्मि से उसके घर परिवार के बारे में जानना चाहा लेकिन वह व्यक्तिगत किस्म की चर्चाओं से सदैव दूर बनी दिखाई देती रही और संजय से कई बार वह हफ्ते दो हफ्तों तक अपने घर पर किसी से आने के बाद नहीं मिल पाती थी लेकिन उनके जाने के बाद फिर सबकुछ सामान्य हो जाता था और अपने पीरियड्स के दिनों को छोड़ कर संजय के साथ रातें बिताना उसे सबसे ज्यादा अच्छा लगता था। अक्सर इन दिनों संजय ज्यादातर रात बेरात हास्पिटल से छूटते ही रश्मि के घर आ जाता था। उसके ढेर सारे रोजमर्रा के इस्तेमाल के कपड़े रश्मि के शयनकक्ष की दराज में पड़े रहते लेकिन रश्मि को उसने कभी अपने सामने कपड़े बदलते नहीं देखा और उसे लगता यह सचमुच बिल्कुल वैसी लड़कियों में नहीं है जो रोज कपड़े बदलती हैं और बेहद चुप होकर अपने पास के जाने-पहचाने लोगों को भी पहचानने से इंकार कर देती हैं इसलिए रश्मि ने जब भी उसे बुलाया वह उससे मिलने से इंकार नहीं कर सका।
संजय और रश्मि के जीवन में सुख के दिन नये मौसम की अनुभूतियों को निरंतर समेटे रहते हैं और इस महानगर में अपनी व्यक्तिगत जिंदगी की इन बातों की चर्चा करना अब कोई भी पसंद नहीं करता। यह जीवन का एक ऐसा निरापद कोना बन जाता है जिसमें दस्तक देना उसकी जानी अनजानी बातों को समझना किसी के लिए भी जितना आसान होता है, यह बदलते मौसम के शुरुआती दिनों में उतना ही कठिन भी लगने लगता है।
संजय को अपनी खुद की चाहत से बढ़कर जिंदगी में कभी कुछ भी अच्छा नहीं लगता और रश्मि की चाहतों को ठीक से जानने समझने के बाद उसे ऐसा लगने लगा था। दिल्ली में वह इतने सालों से है और यहां रश्मि ही सिर्फ उसके जीवन में नहीं है।
उसे अक्सर लगता है मानो वह खुद को नकारता रहा है। अचानक रश्मि की मुस्कान बारिश के बाद की भीगी हवा की तरह उसके मन को ताजगी से भर देती है और उसे ऐसा लगता है कोई पानी से भरी नदी उसकी नज़रों के सामने से गुजरती काफी दूर बहती चली गयी हो। कल हजारीबाग से उसके बड़े भाई ने फोन पर उसके रिश्ते की लड़की के बारे में जब कहा था और उसे घर पर बुलाया था तो उसे लगा मानो यह सब उसके लिए बेहद जरूरी घटित होने वाली बात हो और अगले दिन उसने रश्मि को इसके बारे में बताना चाहा तो उसने उसे हंसते हुए कहा था कि आखिर तुम यह सब मुझे क्यों बता रहे हो ...