"अन्तर्राष्ट्रीय बाल सुसंस्कार शिविर" का आठ दिवसीय आयोजन!
रिपोर्ट: रीता लोधा
बेतिया (बिहार): 'योग फाॅर लिबरेशन' के तत्वावधान में 'नैतिकवान बनने का सफर' कार्यक्रम के तहत 'ज़ूम ऐप्प' पर "अन्तर्राष्ट्रीय बाल सुसंस्कार शिविर" का आठ दिवसीय आयोजन दिनांक: 21-5-2023 से 28-5-2023 तक प्रातः 7 बजे से किया जा रहा है। इस नि:शुल्क शिविर में L F.T (Lokal full timer) व्यंजना आनन्द द्वारा बच्चों को बाल मनोविज्ञान के अनुकूल शिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इस शिविर में योग शिक्षा, ध्यान, योगासन, कोशिकी, ताण्डव नृत्य आदि, यम नियम का शिक्षण, मूल्य बोधक कहानियाँ, आचरण के व्यवहारिक पहलू का महत्व, आधुनिकता और आध्यात्मिक अनुशीलन का जीवन में सुसामंजस्य आदि विषयों की शिक्षा दी जा रही है।
योग शिविर का शुभारंभ L.F.T. व्यंजना आनन्द के द्वारा भावपूर्ण प्रार्थना से हुआ।
"संगच्छध्वं संवर्द्धन सं वो मनांसि जानताम्।
देवां भागं यथा पूर्वे सञ्जनानाम् उपासते।।"
अथार्त् - "हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों। प्राचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा, इसी कारण वे वंदनीय हैं।"
तत्पश्चात् 'जागृति' ने सुरम्य प्रभात संगीत " तुम हो मेरे कृष्णा जगतपति ----" प्रस्तुत किया।
योग प्रशिक्षिका व्यंजना ने योग शिक्षण के पूर्व बच्चों के शरीर में स्फूर्ति लाने के लिए पंजों के बल पर जम्पिंग, झूलासन आदि करवाये। फिर पद्मासन लगाकर, ज्ञान मुद्रा में नेत्रों को बंद कर अपने मन को चारों दिशाओं से खींचकर, आज्ञा चक्र में केन्द्रित करके, श्वास प्रश्वास की विशिष्ट विधि से ध्यान करने की विधि सिखलाई। ध्यान के माध्यम से सृष्टि में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने तथा अपने अंदर की नकारात्मकता को बाहर निकालते हुए, स्वयं को ऊर्जावान, पवित्र और शुद्ध होने की अनुभूति कराई।उन्होंने बच्चों को बताया कि जब योग की दुनिया में आते हैं, तो ऐसे ही शुरुआत की जाती है।
योगासन के क्रम में प्रथम- "बध्यपद्मासन" की विधि और उसको करने से मिलने वाले लाभ को बताया गया। इस आसन को करने से आंतों में खिंचाव होता है, जिससे पेट संबंधी विकार दूर होते हैं। कब्ज़ की समस्या नहीं होती। फलस्वरुप मन स्थिर होता है।
दूसरा योगासन - चक्रासन
इस आसन की विधि बताकर बच्चों को अभ्यास कराया गया। चक्रासन में पूरे शरीर का वजन पैरों के तलवों और हाथों की हथेलियों पर आ जाता है, इससे हाथों और पैरों में मजबूती आती है। शरीर ऊपर उठा रहता है, जिससे अच्छा शारीरिक विकास होता है। सिर नीचे की ओर झुके रहने के कारण मस्तिष्क में रक्त प्रवाह तीव्र होने लगता है और एकाग्रता बढ़ती है तथा बुद्धि तेज होती है। जिन बच्चों की लम्बाई कम है, इस आसन को करने से उनकी लम्बाई बढ़ जाती है।
तीसरा योगासन - ज्ञानासन
बच्चों से विधि पूर्वक ज्ञानासन का चार बार अभ्यास कराया गया। व्यंजना दीदी ने बताया कि यह आसन ज्ञान को, बुद्धि को बढ़ाता है। इससे शरीर की सारी नसों की गंदगी बाहर निकल जाती है तथा शरीर के साथ-साथ मन भी शुद्ध हो जाता है।
चौथा योगासन - वृक्षासन
वृक्षासन की विधि को बहुत ही अच्छे तरीके से करके बच्चों को सिखाया। मन की चंचलता को दूर करने, स्थिरता और एकाग्रता की प्राप्ति में यह आसन बहुत ही उपयोगी है।
पांँचवांँ आसन- सहज उत्कटासन
कुर्सी की स्थिति की विधिवाले इस आसन का अभ्यास बच्चों ने बहुत ही सहजता से किया। इसे करने से घुटनों में मजबूती आती है। कब्ज की समस्या दूर हो जाती है, इस कारण पेट से संबंधित बीमारियों से बचाव होता है। मन एकाग्र होता है। याददाश्त शक्ति बढ़ती है।
इसी बीच आनन्द मार्ग के आदरणीय आचार्य गुणीन्द्रानन्द जी अवधूत की गरिमामई उपस्थिति हुई। उन्होंने भी बच्चों को प्रोत्साहित किया। शिविर में सिखायी जा रही सभी बातों को लिखकर रखने, उनका अभ्यास करने तथा जीवन में पालन करने की शिक्षा दी। पढ़ाई में एकाग्रता तथा शारीरिक, मानसिक विकास में इनके महत्व के बारे में बताया। योग शिक्षिका ने शिविर में शामिल बच्चों तथा आनलाईन शामिल अभिवावकों को भी बच्चों के खान-पान के विषय में ज्ञानवर्धक जानकारियाँ दीं। पौष्टिक आहार, सुपाच्य भोजन से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास संभव है। उन्हें घर पर तथा विद्यालय में टिफिन में दिए जाने वाले आहारों के विषय में बताया।
बच्चों की दुनिया को खुबसूरत बनाने पर बल देते हुए उन्होंने नन्हें पौधों की तरह उनकी देखभाल करने की सलाह दी। बच्चों को नैतिक बनना बहुत जरुरी है। तभी घर, परिवार, समाज और राष्ट्र का वातावरण नैतिकता और अच्छाई से भरा होगा।
अगले क्रम में उन्होंने 'यम नियम' का बृहद विश्लेषण किया।यम साधना के पाँच सोपान हैं।
यम नियम की पहली सीढ़ी - अहिंसा
भौतिक जगत में दूसरों के साथ व्यवहार करने के लिए हम अपने मन को नियंत्रित करके जिस रास्ते पर चलते हैं, यही यम साधना है। इसकी पहली सीढ़ी अहिंसा है। अपने मन, वचन, कर्म से हम किसी को कष्ट न दें, इसे ही अहिंसा कहते हैं।
मन में किसी के प्रति गलत भावना आ रही हो और वह उसे महसूस करके कष्ट का अनुभव करे तो यह मन से की जाने वाली हिंसा होगी।
किसी को कटु वचन बोलना, गाली गलौज करना, गलत बात बोलकर चोट पहुँचाना वचन से की जाने वाली हिंसा है।
कर्म अर्थात् दूसरे को कष्ट पहुँचाने वाले कार्य करना भी हिंसा है। अतः मन, वचन, कर्म से अहिंसा का पालन करना चाहिए।
इसमें अपवाद भी हैं - यदि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सेना के जवान दुश्मनों पर प्रहार करते हैं या उनका संहार करते हैं तो यह हिंसा नहीं है। किंतु यदि कोई व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किसी के साथ मार काट करता है तो वह हिंसा कहलाती है।
यम नियम की दूसरी सीढ़ी - सत्य
सामान्यतः सच बोलने को ही हम सत्य समझते हैं, लेकिन जब हम नैतिकता की राह पर चलते हैं तो दूसरों की भलाई के लिए बोला गया वचन ही सत्य कहलाता है।
सुन्दर उदाहरण देते हुए दीदी ने इसे बारीकी से समझाया। उन्होंने बताया कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। क्योंकि अपने पापों से छुटकारा पाकर व्यक्ति संत बन सकता है। इसको समझाने के लिए दीदी ने रत्नाकर डाकू और नारद जी की संदेशप्रद कहानी सुनाई जो ज्ञान के बाद ऋषि बाल्मीकि बन गया और संस्कृत भाषा में रामायण लिखी।
व्यंजना दीदी ने बच्चों से अच्छा बनने, नैतिक बनने तथा अपने जन्म दाता माता पिता की आज्ञा का पालन करते हुए घर, परिवार, विद्यालय, समाज और राष्ट्र के वातावरण को अच्छा बनाने की प्रेरणा देते हुए, कक्षा का समापन किया।