चंद्रमा के व्यथा: जस करनी तस ..
रचना: बिजेन्द्र कुमार तिवारी
/// जगत दर्शन न्यूज़
सागर के संतान हँई, विष अमृत दुनू भाई बा।
शुभ शीतलता दिहीं जग के, इहे हमरो प्रभुताई बा।।
शिव शीश बिराजी ला हरदम, लक्ष्मी के दुलरुआ भाई
विष्णु जस बहनोई हमरो, काहँवा ले बात बताईं।।
दक्ष के जइसन ससुर जी, रोहिणी जस पत्नी मोर।
बा बुध पराक्रमी पुत्र सुनीं, जेकर दुनिया में शोर।।
बा देव सभे नतइत हमरो, जे सब पर रौब जमावे।
पर राहु जस ग्रह ग्रासे तब, केहु ना कामे आवे।।
सुख में सभ जय जयकार करे, दुख मे रहीं अकेला
हीत-मीत संंगी साथी, सब झूठों बनल झमेला।।
कहे बिजेन्दर साँच सुनीं, दुख के ना साथी कोय।
कर्म बा आपन साथी, भइया जस करनी तस होय।।
🌹🌹🙏🙏 🌹🌹
◆◆■■■■◆◆