ज्ञान शिरोमणि विद्योतमा (खंड काव्य)
पुस्तक समीक्षा
कवयित्री: रजनी सिंह
प्रकाशक : रजनी प्रकाशन
रजनी विला, डिबाई, बुलंद शहर
उत्तरप्रदेश- 203393
मोबाइल+919412653980
भारतीय शास्त्र और ज्ञान परंपरा के प्रसार में नारी के अवदान का सरस विवेचन!
समीक्षक: राजीव कुमार झा
हमारे देश की जीवन संस्कृति में सदियों से अनेकानेक किंवदंतियों का प्रचलन रहा है और इनके माध्यम से हमें अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े जीवन तत्वों की जानकारी मिलती है। सालों भर मनाये जाने वाले पर्व त्यौहारों से लेकर संसार में अपने महान जीवन से यश और कीर्ति प्राप्त करने वाले महापुरुषों के जीवन से जुड़ी कथा कहानियों में समाहित किंवदंतियां हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के विविध पहलुओं से अवगत कराती हैं और इनमें जीवन के व्यापक और गूढ़ अर्थों का समावेश हुआ है। कालिदास को कविकुलगुरु कहा जाता है और संस्कृत साहित्य में उनका स्थान सर्वोपरि है। उनके बारे में यह किंवदंती है कि वह पहले अनपढ़ और महामूर्ख थे और इसी दशा में राजकुमारी विद्योतमा के ज्ञान गरिमा घमंड से आहत पंडितों ने षड्यंत्र रचकर कालिदास का विवाह विदुषी नारी विद्योतमा से करा दिया था और इसके बाद सुहागरात में कालिदास को विद्योतमा के फटकार और तिरस्कार का सामना करना पड़ा था। कालिदास को इन्हीं परिस्थितियों में जीवन में ज्ञान की महिमा का आभास हुआ था और वह विद्योतमा से विदा लेकर ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हुए थे। हिंदी की सुपरिचित कवयित्री रजनी सिंह ने अपने खंड काव्य ' ज्ञान शिरोमणि विद्योतमा ' में कालिदास के जीवन से जुड़ी इसी किंवदंती को आधार बनाकर समाज में ज्ञानार्जन की गरिमा और इसमें नारी की भूमिका से जुड़े तथ्यों का प्रतिपादन प्रस्तुत ग्रन्थ की विषयवस्तु में किया है।
"काशी में जिसके चर्चे, विद्वतजन निसिदिन गाते हैं।
वह नारी, ज्ञान शिरोमणि,
विद्योतमा नाम बताते हैं।।
विद्या में उत्तम सर्वोत्तम,
विद्योतमा नाम यशस्वी।
काशी नरेश सौभाग्य शुभी,
जन्मी गृह पुत्री शास्त्रवी।।
वेदशास्त्र की कठिन ऋचाएं,
कंठस्थ उसे अभिभूत ।
ज्योतिर्मय व्यक्तित्व प्रभावी,
अंग- उमंग कुसुमित।।
वैदिकता ' कृतं ' में दक्षिणे हस्ते,
जयो में सव्य आहित:।
राजपुरोहित भविष्य बताते,
साक्षात् ' शारदे ' घर नृपित:।। "
(विद्योतमा)
भारतीय संस्कृति में नारियों को सदैव सम्मानजनक स्थान प्राप्त रहा है और जीवन के उच्च आदर्शों और लक्ष्यों के प्रति नारियों का जीवन सदैव समर्पित रहा। इसमें ज्ञानार्जन का स्थान भी उल्लेखनीय है और वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक और इसके बाद के कालों में भी चिंतन मनन के अलावा ज्ञान विज्ञान और जीवन के अन्य क्षेत्रों में नारियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। विद्योतमा हमारे देश की किंवदंतियों में वर्णित होने वाली नारी चरित्र है लेकिन कालिदास के जीवन से जुड़ी उसके विवाह की कथा ने उसे हमारे देश के जनजीवन और यहां की संस्कृति में प्रतिष्ठित कर दिया है और वह सदियों से जीवन में सबके लिए विद्या,ज्ञान और बुद्धि की प्रेरणा प्रदान करने वाली महान नारी के रूप में यहां देखी जाती है। रजनी सिंह ने अपनी इस काव्य कृति में विद्योत्तमा के इस महान प्रेरक जीवन कथा का सुंदर और सरस वर्णन किया है। इसलिए यह काव्य ग्रंथ बेहद पठनीय बन पड़ा है।
" पांडित्य पुरोधा लख प्रतिभा,
हर्षाते दुलराते।
दस - पांच बैठ,
विद्योतमा विदुषी के गुण गाते।।
विद्वानों बीच विलक्षण विदुषी,
ज्ञान शिरोमणि नारी।
अंबर में टिमटिम तारे,
बीच चंद्रमा ज्यों चिलकारी ।।
उपनिषद की गहन व्यंजना,
नयनों से समझाती।
वेद पुराण मंत्र की शुचिता,
पल में अर्थ सुझाती।।
सुखद वसुंधरा फैली,
पग - पग उसके शीतल स्वर से।
यश समिधा से दिशा,
सुवासित त्याग यज्ञ अर्पन से।।
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर,
अंतस मन में भरे पड़े।
उच्च शिखर छाये विद्वतजन,
सुनने लालायित खड़े।।
साहित्य जगत में आमंत्रित,
सम्मान मान आलोकित।
अलंकार उपमा विभूषित,
कीर्ति कला शोभित।।
काशी समाज का गौरव,
माननीयों में अग्रगणी।
सौंदर्य स्वरूप अनूप,
रति हो इन्द्रपुरी रमणी।।
कजरारे काले नयना,
केशलता मालती महकी।
ब्रह्मा की अनमोल कृति,
देवलोक उर्वशी बहकी।।
अनमोल मेल सौंदर्य - विवेक,
चर्चा का विषय युवाओं का।
अद्वितीय नारी रत्ना,
कौन बनेगा पतिवर इसका।।
नवयौवना के करतब,
ऐसे धैर्य - धुरंधर छूटे।
स्वाभिमान की प्रबल धनी,
अस्तित्व न कोई लूटे।।
विजयी सदैव रही सभा में,
विद्वानों के मध्य।
शास्त्रार्थ में कभी हरा न सका,
उपस्थित सभ्य।।
विद्वानों संग रहती है,
विज्ञान चहेती नारी।
विज्ञानी जग अभिभूत,
विद्योतमा भूषणा नारी ।।"
अपने काव्य लेखन से इस प्रकार रजनी सिंह ने भारतीय समाज में नारी जीवन विषयक प्रचलित भ्रामक मिथकों पर प्रहार किया है और विद्योतमा की जीवनकथा के माध्यम से यहां के कुलीन समाज में नारी जीवन के बारे में उच्च सामाजिक आदर्शों का समुचित चित्रण अपने इस काव्यग्रंथ में किया है। प्रस्तुत काव्यकृति के विभिन्न अध्यायों में राजकुलकन्या विद्योतमा की बाल्यावस्था और इस वय में माता - पिता के सान्निध्य में उसके हृदय में ज्ञान के प्रति अंकुरित होने वाला अनुराग इसका पल्लवन और उसके ज्ञान गांभीर्य के समक्ष पंडितों का नतमस्तक होना और उनके मन का ईर्ष्या से घिर जाना फिर षड्यंत्र का रचा जाना और कालिदास के साथ विद्योतमा के पावन परिणय की शेषकथा के तौर पर उससे विदा लेकर उनका ज्ञानार्जन में संकल्प के साथ संलग्न होना और पत्नी से कई सालों के विछोह के बाद ज्ञानी पंडित के रूप में अपने गृह वापस लौटकर आना यह सब सारे प्रसंग रजनी प्रणीत इस काव्य कृति में सुंदर काव्यानुभव के रूप में परिणत होते प्रतीत होते हैं।
हमारे देश में नारी ज्ञान की परंपरा में विद्योतमा की कथा देश में इस जाति की गौरव गाथा की तरह युगों से विद्वत समाज में प्रचलित रही है। मध्यकाल में नारी के जीवन की काफी अवनति हुई और और वह ज्ञानार्जन शास्त्र चिंतन मनन से भी दूर हो गयी लेकिन आधुनिक काल में शिक्षा और ज्ञान के माध्यम से नारियों के उत्थान का संकल्प समाज में फिर प्रचलित हुआ और इस दृष्टि से विद्योतमा की कथा वर्तमान समय में प्रासंगिक है। सचमुच वह आज भी ज्ञानार्जन में तल्लीन देश की करोड़ों युवा कन्याओं के लिए प्रेरणा की स्रोत है।
रजनी सिंह ने किंवदंतियों में आधार पर समाज में लोगों के बीच चर्चित और वर्णित चरित्रों को लेकर इसके पहले भी काव्य ग्रंथों का प्रणयन किया है। तुलसीदास और रत्नावली की दांपत्य कथा के माध्यम से भी उन्होंने हमें भारतीय नारी के संस्कारों में अपनी संस्कृति और इसके उदात्त आदर्शों के प्रति अपने हृदय के पावन प्रेम को प्रकट किया है और इस रूप में वह भारतीय नारी के मन प्राण को काव्य के फलक पर उकेरने वाली कवयित्री कही जा सकती हैं। विद्योतमा और रत्नावली इन दोनों ही नारियों को भारतीय विदुषी परंपरा की रत्न के रूप में देखा जा सकता है। इन्होंने सच्ची पतिव्रता के रूप में आजीवन अपने पतियों के साथ दांपत्य जीवन के पावन आदर्शों का भी निर्वहन किया। विद्योतमा की प्रेरणा से अगर कालिदास को कविकुलगुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो रत्नावली की महिमा और उसके संदेश से तुलसीदास हिंदी काव्य जगत में भक्ति काल के सबसे श्रेष्ठ कवि के रूप में अधिष्ठित हुए।
कालिदास और विद्योतमा के विवाह की कथा कई निहितार्थों को प्रकट करती है और इसमें विद्योतमा के अपमान और अनादर के बाद कालिदास के मन में विद्वान बनकर समाज में आदर सम्मान पाने की लालसा समाज में स्वभावत: अभिजात्य तबके के लोगों के साथ सामान्य पृष्ठभूमि के लोगों के रिश्तों में कायम होने वाले अलगाव के साथ उनसे प्रेम और गरिमा के संबंधों को कायम करने के मानवीय यत्नों और चेष्टा ओं को प्रदर्शित करता है।
रजनी सिंह हिंदी की पुरानी और प्रतिष्ठित कवयित्री हैं और इनके काव्य लेखन में देश की प्राचीन गरिमा यहां सभ्यता और संस्कृति के विकास में नारी की महिमा का आख्यान विशिषटता से उद्घाटित हुआ है। काव्य कला की बारिकियों का भी उन्हें असाधारण ज्ञान है और यह सारी बातें उनके काव्य ग्रंथ ' ज्ञान शिरोमणि विद्योतमा ' के आद्योपांत अनुशीलन से ज्ञात होती हैं और उन्होंने सरस काव्य शैली में इसे रचकर हमारे समाज और संस्कृति की इस कथा को अत्यंत सजीव और जीवंत रूप प्रदान किया है।
कवयित्री ने अपनी इस काव्य कृति में विद्योतमा को भारतीय दांपत्य परंपरा की आदर्श नारी के रूप में भी चित्रित किया है और कालिदास के ज्ञान प्राप्ति के लिए घर से बाहर निकल जाने के बाद वह कई सालों तक उनके गृह आगमन की प्रतीक्षा में एक - निष्ठ जीवनयापन करती दिखाई देती है और कालिदास के गृह आगमन के बाद उनकी आवाज को सुनकर वह यह समझ जाती है कि उसे कोई ज्ञानी आदमी बाहर पुकार रहा है। सचमुच शिक्षा और ज्ञान से हमें शील और विनय की प्राप्ति होती है। विवाह के पश्चात विद्योतमा के द्वारा कालिदास के अनादर के पीछे ऐसी ही बातें थीं और इसके पीछे पुरुष वर्चस्व की मानसिकता से जुड़े पंडितों के षड्यंत्र की भूमिका भी इसमें प्रमुख थी। इन सब सारी बातों से गुजरते हुए रजनी सिंह के इस काव्य ग्रंथ को पढ़ना जितना दिलचस्प अनुभव है, यह उतना ही प्रेरक भी साबित होता है।