★ जगत दर्शन साहित्य ★
◆ काव्य जगत ◆
कलयुग के प्रभाव बा: मुकेश कु. पंडित
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भाई के भाई ना बुझे,
बाबू जी के दुफुटी के अभाव बा,
खूब निहार के देखे लोगवा,
इ कलयुग के प्रभाव बा ।
आदमी के आदमी ना चिंहे,
नारी के सम्मान लुटात बा,
अपहरण चोरी लूट डकैती,
के मंत्र इँहा बचात बा।
हम -हम के इ गम
सब लोगवा के दुर्भाव बा,
खुबे निहार के देखीं लोगवा,
इ कलयूग के प्रभाव बा।
दुध के ना ही दर्शन होखे,
चुआठ उठावना हो जात बा,
जिए के बा अस्सी बरिस त,
चालीसे में खाट उठ जात बा।
गुरूजी के चेला ना समझे,
सर्व शिक्षा के दबाव बा,
खूब निहार के देखी लोगवा
इ त कलयुग के प्रभाव बा।
निर्गुण, पूरबी, भजन के छोड़,
अश्लील गीत पर जात बा,
नारी के पूजन में देखी,
नारी के नाच देखात बा।
काजू किसमिस छोड़ी के,
पुड़िया खूब घोटात बा,
खूब निहार के देखी लोगवा,
इ कलयुग के प्रभाव बा।
रामायण, गीता के छोड़ अब,
उपन्यास खूब वचात बा,
ईमानदारी के पाठ पढ़ाके,
पीछे से घुस लियात बा।
मास्टर मुकेश ई कविता से कहस,
झूठे मोल भाव बा,
खूब निहार के देखी लोगवा,
ई कलयुग के प्रभाव बा।
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रचना
मुकेश कुमार पंडित
(शिक्षक)
जईछपरा, सारण (बिहार)