'रहूं सदा मैं गांव में....'
पगड़ी चमके शीश पे,
जूते हरदम पांव में।
आशीष दीनानाथ दो ,
रहूं सदा मैं गांव में।।
कोरोना से त्रस्त है,
ये धरती चहूं ओर।
कहां रहूं मुझको बता,
मिले चैन की ठौर।।
शहरी जीवन यूं चले,
जैसे पानी नाव में।
आशीष दीनानाथ दो,
रहूं सदा मैं गांव में।
कवि
बिजेंद्र कुमार तिवारी
(बिजेंदर बाबू)