◆◆ शीशा दिल का चटक गया ◆◆
मन अनेको बार टूटा
हमारे अपनो ने ही
हमारे ही घर में
हमें लूटा।
उफनते सैलाब में
मचलते दरिया में
बह गया सब कुछ
क्या कहे क्या छूटा।
बेमौसम बरसात में
धुल गया
नकली रिश्तों का
कागजी मुखौटा।।
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कवियित्री
किरण बरेली