विजयादशमी का आह्वान : अंतस के राम को जगाएँ
विजयादशमी का पर्व हमारे आत्मिक स्वरूप, हमारी आत्मा की विजय का उद्घोष भी है और आह्वान भी। जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, केवल रावण के पुतले जलाने तक सीमित उत्सव नहीं है। यह एक गहन दार्शनिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सन्देशवाहक है, जिसके पीछे अनेक स्तरों पर उद्देश्य निहित हैं। यह पर्व हमें बाहरी और आंतरिक, दोनों प्रकार की विजय का आह्वान करता है। यह आध्यात्मिक विजय का प्रतीक एवं आत्मा की अजेयता को दर्शाता है। राम-रावण का युद्ध केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि मानव मन के भीतर चलने वाले निरंतर संघर्ष का रूपक है।
श्री राम हमारी आदर्श आत्मा का विशुद्ध चेतन स्वरूप हैं और रावण के दस सिर हमारे भीतर के दस प्रमुख दोषों के प्रतीक -काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार,मद,मत्सर स्वार्थ,अज्ञान और अधर्म। जब हम अपने भीतर के "राम" (विवेक और धर्म) को जगाते हैं, तो हम "रावण" (आंतरिक दोषों) पर विजय पाकर आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं। यह केवल अतीत की जीत नहीं, बल्कि भविष्य के प्रति एक वचनबद्धता है कि हम अच्छाई के मार्ग पर डटे रहेंगे।रामायण की गाथा को याद करके हमें अपनी सभ्यता के मूल्यों – मर्यादा, कर्तव्य, परिवार के प्रति समर्पण और न्याय के लिए संघर्ष का बोध होता है। यह हमारे सांस्कृतिक गौरव को पुनर्जीवित करती है। "असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की विजय।" यह हमें समाज में नैतिक मूल्यों, सदाचार के पक्ष में खड़े होने का साहस देता है। विजयादशमी हमें हमारे इतिहास और सांस्कृतिक विरासत से जोड़ती है विभिन्न आयामों एवं आदर्शों से अवगत कराती है। यह पर्व नवरात्रि के बाद आता है, जब किसान अपनी खरीफ की फसल (जैसे धान) काट चुका होता है। इसलिए, यह फसल कटाई और प्रकृति की समृद्धि का भी उत्सव है। भारत मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश रहा है। इस अवसर पर लोग अपने उपकरणों, वाहनों और शस्त्रों की पूजा करते हैं, जो एक प्रकार से उनके जीविकोपार्जन के साधनों के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका है।
शरदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की उपासना के बाद आने वाला यह पर्व, दैवीय शक्ति के आशीर्वाद से सुसज्जित होकर जीवन के संघर्षों में उतरने का प्रतीक है। मान्यता है कि देवी की कृपा से ही हम हमारे भीतर के नौ राक्षसों का दमन कर के दैवीय शक्ति का वरदान (विवेक, साहस) प्राप्त करते हैं। दक्षिण भारत में इस अवधारणा से इसे धूमधाम से मनाया जाता है। इस तरह यह पर्व समाज के सभी वर्गों को एक साथ सामूहिक सांस्कृतिक पहचान का एहसास कराता है जिससे सामाजिक व सांस्कृतिक सामुदायिक एकता के विकास के साथ साथ जीवन की गुणवत्ता का विकल्प होता है।
अंततः, विजयादशमी का पर्व हमें एक गहन जीवन संदेश देता है कि- “संघर्ष अपरिहार्य है और रणनीति अनिवार्य” जीवन में अच्छे और बुरे का संघर्ष सदैव रहेगा। उसके लिए धैर्य और नीति से कार्य करने का कौशल आवश्यक है। इसका वास्तविक अर्थ तभी पूर्ण है जब हम अपने भीतर के "दशहरे" का आयोजन करें- अपने दसों दोषों के पुतलों को आत्म-ज्ञान और सदाचार की अग्नि में भस्म करें। इससे हमें यही प्रेरणा मिलती है कि हर वर्ष, हर दिन, हर क्षण, हम अपने भीतर के राम को जगाएँ और अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन में विजय का नया कीर्तिमान स्थापित करें। यही इस पर्व का सारतत्त्व और सनातन के अध्यात्म का संदेश है।
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