नज़रिया: भाजपा में कांग्रेसी कल्चर जोर पकड़ रहा है?
✍️राजीव कुमार झा
भाजपा देश में पहले पूंजीपतियों की पार्टी मानी जाती थी और अब यह बनियों और टूटपूंजिए व्यवसायियों की पार्टी बन गयी है। देश के किसान मजदूर इस पार्टी के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते हैं। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के जो नेता कई बार विधायक रह चुके हैं उनको अपनी इच्छा से अब अन्य लोगों को भी मौका देना चाहिए। दूसरी बात कि ऐसे नेता अपने विधानसभा सीट को पारिवारिक सीट के रूप में भी नहीं देखें। आज भाजपा में भी यह कल्चर जोर पकड़ रहा है। बांसुरी स्वराज से लेकर विवेक ठाकुर और अन्य कई नेताओं के बेटे बेटियों को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया। पार्टी में गरीब और साधारण समर्पित नेताओं को भाजपा आखिर उम्मीदवार क्यों नहीं बनाती है। अमित शाह को भी डेढ़ दशकों से देश के गृहमंत्री पद पर आसीन रखा गया है। भाजपा को अपना आगामी प्रधानमंत्री भी तय करना होगा। सबकी जगह बदलती रहनी चाहिए। भाजपा में कांग्रेसी कल्चर जोर पकड़ रहा है और ऐसे में यह पार्टी खत्म हो जाएगी। भाजपा में एक तरफ भारतीय जीवन संस्कृति के आदर्शों के अनुसरण का नारा निरंतर इसकी विचारधारा का अभिन्न हिस्सा बताया जाता है तो दूसरी ओर अस्सी नब्बे साल के राजनीतिज्ञ इस पार्टी की संन्यास शासन की जीवन परंपरा में राजपाट की आसक्ति से जकड़े दिखाई देते हैं। जम्मू कश्मीर में पाक अधिकृत कश्मीर को यह पार्टी अगर भारत में मिलाना चाहती है तो फिर इसमें देर क्यों हो रही है और ट्रंप के चक्कर में पड़ना क्या निरंतर भारत के लिए महंगा सौदा साबित नहीं हो रहा है। शाहबाज शरीफ जैसे कमजोर प्रधानमंत्री ने भारतीय मिसाइल हमले का जवाब दिया और खुलेआम पाकिस्तान की संसद में पहलगाम समेत कश्मीर को अपने देश का हिस्सा कहा। भाजपा को अपने संगठनात्मक ढांचे में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत बनाना होगा और लंबे समय से विभिन्न पदों पर काबिज नेताओं की जगह नये ईमानदार लोगों को पार्टी में विभिन्न स्तरों पर कमान सौंपनी होगी। भाजपा को अवसरवादी नेताओं से भी बचना होगा और भगवा कपड़ों में दिखाई देने वाले नेताओं पर ज्यादा विश्वास करना इस पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होगा। भाजपा में दूसरी पार्टी के काफी नेता शामिल होना चाहते हैं लेकिन प्रलोभन से इस पार्टी को अब दूर रहना चाहिए।