झारखंड की राजनीति में शोक की लहर: 'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन नहीं रहे, दिल्ली में ली अंतिम सांस
रांची/नई दिल्ली: झारखंड आंदोलन के प्रणेता, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और तीन बार के मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और लंबे समय से किडनी से संबंधित बीमारी से जूझ रहे थे। उनके निधन की पुष्टि उनके पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की।
आदिवासी समाज में 'दिशोम गुरु' और 'गुरुजी' के नाम से विख्यात शिबू सोरेन ने आदिवासी अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए चार दशक से भी अधिक समय तक संघर्ष किया। वे आठ बार लोकसभा सदस्य रहे और झारखंड राज्य के गठन में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही। उन्होंने हमेशा हाशिए पर पड़े समाज के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया।
शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर आज रांची लाया गया, जहाँ हजारों लोगों ने ‘दिशोम गुरु अमर रहें’ के नारों के बीच उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्य के मंत्रीगण, विपक्ष के नेता और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भावभीनी विदाई दी। दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाएगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शिबू सोरेन के निधन को सामाजिक न्याय और जन अधिकारों के संघर्ष में अपूरणीय क्षति बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सर गंगाराम अस्पताल पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर सांत्वना व्यक्त की।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, और झारखंड तथा देश भर के तमाम नेताओं ने गहरा शोक जताया। सभी ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद किया जिन्होंने पूरे जीवन को आदिवासी समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों को समर्पित कर दिया।
झारखंड सरकार ने राज्य में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। 4 से 6 अगस्त तक सभी सरकारी कार्यालय और विद्यालय बंद रहेंगे तथा राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। शिबू सोरेन का निधन केवल एक नेता का जाना नहीं है, बल्कि यह झारखंड और देश के सामाजिक संघर्षों के एक युग का अवसान है। ‘दिशोम गुरु’ की विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।