7 जून: नस्लवाद के विरुद्ध गांधी का संकल्प और आज की सीख!
आज ही के दिन, 7 जून 1893 को महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव का कड़वा अनुभव हुआ था। गांधीजी डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे और उनके पास प्रथम श्रेणी का वैध टिकट था। फिर भी, केवल उनके रंग के कारण एक गोरे अंग्रेज ने उन्हें ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे से बाहर निकाल दिया। गांधीजी को रातभर स्टेशन की ठंड में बितानी पड़ी।
यह घटना उनके जीवन की दिशा बदलने वाली सिद्ध हुई। उसी रात उन्होंने संकल्प लिया कि वे न केवल दक्षिण अफ्रीका बल्कि पूरे विश्व को नस्लीय भेदभाव से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करेंगे। आगे चलकर यह घटना ही उनके सत्याग्रह और अहिंसा के आंदोलन की नींव बनी।
इतिहास की पुनरावृत्ति: प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा
123 वर्षों बाद, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उसी स्टेशन पर पहुँचे और उसी ट्रेन में सफर कर उस ऐतिहासिक क्षण को दोहराया। यह यात्रा भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और गांधीजी के विचारों के प्रति सम्मान का प्रतीक बनी।
नस्लवाद की पुनरावृत्ति: जॉर्ज फ्लॉयड की मौत
दुखद है कि 21वीं सदी में भी नस्लवाद की आग बुझी नहीं है। 25 मई 2020 को अमेरिका में अफ्रीकी मूल के नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की एक श्वेत पुलिस अधिकारी डेरेक चॉविन द्वारा सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी गई। फ्लॉयड लगातार कहता रहा – “I can't breathe” (मैं सांस नहीं ले सकता), परंतु उसके करुण पुकार को अनसुना करते हुए पुलिस अधिकारी ने बेरहमी से उसके गले पर घुटना दबाए रखा, जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया और नस्लवाद के विरुद्ध एक बार फिर आवाजें बुलंद हुईं।
नस्लवाद: मानवता पर कलंक
नस्लवाद केवल भेदभाव नहीं, बल्कि मानवता पर गहरा कलंक है। “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना को मानने वाले हर भारतीय के लिए यह एक पीड़ा और आक्रोश का विषय है। यह समय है कि हम महात्मा गांधी के दिखाए मार्ग पर चलकर नस्लीय घृणा के विरुद्ध वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाएं और न्याय व समानता का समर्थन करें।