टीबी की पहचान, निदान, उपचार और रोकथाम में व्यापक जनभागीदारी सुनिश्चित की जाए: सिविल सर्जन
टीबी देखभाल, BPaLM और प्रोग्रामैटिक मैनेजमेंट ऑफ टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (पीएमटीपीटी) के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित:
ग्रामीण स्तर पर कार्यरत एचडब्ल्यूसी के सीएचओ की भूमिका महत्वपूर्ण: सीडीओ
एमडीआर- टीबी को छह महीने में ठीक करने में
BPaLM की अहम भूमिका: डब्ल्यूएचओ
सिवान (बिहार): प्रधानमंत्री टीबी मुक्त अभियान की शत-प्रतिशत सफल बनाने के उद्देश्य से ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य संस्थानों के अधिकारी और कर्मियों की सहभागिता सुनिश्चित करने को लेकर सदर अस्पताल परिसर स्थित सभागार में टीबी देखभाल, BPaLM और प्रोग्रामैटिक मैनेजमेंट ऑफ टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (पीएमटीपीटी) के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद, संचारी रोग पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार, डब्ल्यू एच ओ के क्षेत्रीय सलाहकार डॉ कुमार विजयेंद्र सौरभ, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, डीपीएस शैलेन्दु कुमार, डीपीसी दीपक कुमार, पीपीएसए नीरज गोस्वामी, एसटीएलएस, एसटीएस, सहित जिले के सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, चिकित्सा पदाधिकारी, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ), जीएनएम, एएनएम उपस्थित रहे।
सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद ने कहा कि टीबी उन्मूलन की दिशा में भारत की यात्रा विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने और त्वरित तरीके से सिद्ध तकनीकों को उपलब्ध कराने में इसके नेतृत्व का प्रमाण है। अग्रणी रूप में अनुसंधान से लेकर उन्नत निदान और उपचार तक, सार्वभौमिक सामाजिक सहायता प्रावधानों की शुरूआत तक भारत वैश्विक स्तर पर टीबी प्रतिक्रिया में सबसे आगे है। क्योंकि समय की मांग है कि टीबी की पहचान, निदान, उपचार और रोकथाम में व्यापक जनभागीदारी सुनिश्चित की जाए। जिसको लेकर तीव्र 100 दिवसीय अभियान टीबी को खत्म करने की हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता का एक और प्रमाण है। मुझे विश्वास है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में और सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ, हम मानवता के इस महान दुश्मन को हरा देंगे और सभी के लिए एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण करेंगे।
संचारी रोग पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार ने बताया कि जिले में विगत 7 दिसंबर 2024 से 24 मार्च 2025 तक 100 दिवसीय सघन यक्ष्मा खोज अभियान चलाया जा रहा है। जिसको लेकर विभागीय स्तर से जिले को निश्चय वाहन उपलब्ध कराया गया है। जिसमें पोर्टेबल एक्स-रे मशीन की सुविधा उपलब्ध है। जिसके द्वारा प्रत्येक दिन चिन्हित या चयनित पंचायत में विशेष रूप से स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन कर सैकड़ों संदिग्ध यक्ष्मा रोगियों का एक्सरे एवं सीबीनेट से जांच किया जा रहा है। जिले के सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारीयों सहित चिकित्सा पदाधिकारी, जीएनएम, एएनएम को ग्रामीण स्तर पर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) के के सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) को सी- वाई टीबी से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया। क्योंकि सी- वाई टीबी कार्यक्रम के तहत अब ग्रामीण क्षेत्रों में एचडब्ल्यूसी की भूमिका काफी मददगार साबित होने वाली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय सलाहकार डॉ कुमार विजयेंद्र सौरभ ने उपस्थित सभी प्रतिभागियों से BPaLM उपचार से संबंधित जानकारी देते हुए कहा कि बीपीएएलएम (BPaLM) उपचार, बहुऔषधि प्रतिरोधी तपेदिक (एमडीआर-टीबी) के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक दवाओं का संयोजन है। जिसमें मुख्य रूप से बेडाक्विलाइन, प्रीटोमैनिड, लाइनज़ोलिड और मोक्सीफ़्लॉक्सासिन जैसी चार दवाओं को शामिल किया गया हैं। क्योंकि इस उपचार पद्धति से पारंपरिक रूप से एमडीआर- टीबी उपचार की तुलना में ज़्यादा सुरक्षित, असरदार, और कम समय में ठीक होने वाली है। BPaLM उपचार, एमडीआर- टीबी के लिए पहला विकल्प होना चाहिए। हालांकि यह उपचार छह महीने का होता है और इसे पूरी तरह से मौखिक रूप से लिया जाता है। वही इसके उपचार से एमडीआर- टीबी को छह महीने में ठीक किया जा सकता है। बीपीएएलएम उपचार की लागत कम होती है और इसमें कम गोलियां लेनी पड़ती हैं, जिस कारण उपचार की सफलता दर ज़्यादा होती है। अगर किसी मरीज़ को बीडीक्यू, पीए या लाइनज़ोलिड से असहिष्णुता है, तो बीपीएएलएम उपचार बंद कर दिया जाता है।