पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी (साक्षात्कार)
होस्ट- किशोर जैन
रिपोर्ट- सुनीता सिंह "सरोवर"
कर्म तू पुनीत कर, धर्म धार उर में चल।
हो नहीं निराश मन,कठोर प्रण से ही मिलेगा बल।।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ की भौगोलिक जलवायु और कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर रहते हैं। कभी- कभी औसत बारिश तो कभी सूखे की मार, कभी बाढ़ के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। ऐसे में जो काश्तकार हैं, वे तो भलीभाँति अपनी व्यवस्था कर लेते हैं। मारे जाते हैं छोटे किसान और जहाँ तक देखा जाए धान की खेती के लिए पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती हैं जो बहुत ही खर्चीला हो जाता है। ऐसे में बहुत से किसान तो साल में बस एक फसल उगा कर शांत बैठे जाते बाकी कुछ जोखिम उठाती भी हैं, तो बहुत मुनाफा नहीं निकाल पाते। इन सब परेशानियों के कारण आज धान में काला नमक विलुप्त होने की कगार पर हैं। इन परिस्थितियों से उबारने के हमारे वैज्ञानिक निरंतर प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही एक सफल और कर्मठ कृषि वैज्ञानिक हैं, डाॅ. चेत राम चौधरी जी, जिनके कठिन परिश्रम और लगन से आज धान की फसल महक रही है और लाभ भी पहुँचा रही है। डाॅ. चौधरी को 22 अप्रैल 2024 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। तो आइए हम रुबरु करवाते हैं, इस सदी के नायक कृषि वैज्ञानिक डाॅ. चेतराम चौधरी जी से।
नाम: डॉ रामचेत चौधरी
शिक्षा: B.Sc (Agriculture): DDU Gorakhpur
M.Sc (Agriculture): Govt Agri College, Kanpur
Ph.D.: Agra University
Post Doc: Germany
प्रश्न: आपको कृषि से लगाव कैसे हुआ?
उत्तर: किसान के बेटे है, खेती से लगाव है।जानबूझकर खेती की पढ़ाई की और पी एच डी की पढ़ाई पूरी कर के ही नौकरी मे आया।
प्रश्न: आप अपने देश से लगाव कैसे रखते है?
उत्तर: 40 से अधिक देशो मे सेवाएं दी है। कुछ अपने देश से अधिक विकसित परन्तु अधिकांश कम विकसित। अपनापन और प्यार अपने देश मे सबसे अधिक मिला, इसलिए संयुक्त राष्ट्र से सेवानिवृत्त होकर भारत मे बसे। दूसरी बात, जंगल मे तो मोर बहुत नाचा, पर अपने देश मे भी कुछ कर दिखाने का इरादा था, इसीलिए यहा बसे।
प्रश्न: अलग अलग देशों के कितनी भाषाएं बोल लेते है आप?
उत्तर: 7 भाषाएं अभी भी बोलते है कमोबेश। जर्मन, फिलीपींस, कम्बोडिया, म्यामांर और फ्रांसीसी देशो मे रहने का अवसर अधिक मिला तो उनकी भाषा भी सीखली।
प्रश्न: कालानमक धान के बारे में कुछ बताएं!
उत्तर: कालानमक धान भगवान बुद्ध का प्रसाद है और 3000 वर्षो तक जीवित रहने के बाद अब विलुप्त होने के कगार पर था। इस को हमने किसान, उपभोक्ता और सरकार की मदद सै बचाया। अबतो किसानो की आमदनी तिगुनी हो रही है और कालानमक निर्यात भी हो रहा है।
अंत में बेहतरीन संचालन कर रहे यू.के. से किशोर जैन ने अपने अतिथि को धन्यवाद दिया। इस नेक व सराहनीय कार्य के लिए दिव्यालय की संस्थापक व कार्यक्रम आयोजक व्यंजना आनंद 'मिथ्या' और पटल अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक मंजिरी "निधि" 'गुल'जी को कार्यक्रम आयोजन के लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि इस तरह साक्षात्कार के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Vyanjana Anand Kavya Dhara यूट्युब चैनल पर लाइव हर बुधवार शाम सात बजे हम नये नये प्रतिष्ठित व्यक्ति से परिचित हो सकते हैं या उसकी रेकॉर्ड वीडियो को बाद में देखा जा सकता है।