संत की सेवा कर ही परमात्मा से आत्मा का हो सकता है मिलन!
///जगत दर्शन न्यूज
सिवान (बिहार):सिसवन प्रखंड के साईपुर गाँव के समीप श्री संकट मोचन हनुमान परिसर में चल रहे विष्णु महायज्ञ के पांचवे दिन पंडित अनुराग कृष्ण ने कहा कि हिमालय की गुफा में तपस्या कर रहे नारद मुनि से देवराज इन्द्र भयभीत हो उठे कि कहीं देवर्षि नारद अपने तप के बल से इंद्रपुरी को अपने अधिकार में न ले लें। इंद्र के भेजे गए कामदेव नारद की तपस्या को भंग करने में असफल रहे। तब कामदेव ने श्राप के भय से देवर्षि के चरणों में गिरकर क्षमा मांग ली। यह बात नारद ने शिवजी से कही उन्होंने हरि को बताने से मना किया। नारद ने कामदेव पर जीत की बात विष्णुजी को भी बता दी। विष्णु ने माया से सुंदर नगर रच डाला, जहां शीलनिधि राजा की पुत्री विश्वमोहिनी का स्वयंवर हो रहा था। नारद विश्वमोहिनी के सौंदर्य से मोहित होकर उसके स्वयंवर में जा पहुंचे। श्री हरि से यह वरदान लेकर कि उनका रूप नारद को मिल जाए। स्वयंवर में शिव के गणों ने नारद का मजाक उड़ाया। विश्वमोहिनी ने भगवान विष्णु का वरण किया। तब नारद को पता चला कि श्रीहरि का अर्थ बंदर भी होता है और उन्हें भगवान ने बंदर का रूप दे दिया है। तब नारद ने विष्णुजी से कहा कि तुमने मेरे साथ धोखा किया है। इसलिए मैं तुम्हें तीन श्राप देता हूं। पहला कि तुम मनुष्य के रूप में जन्म लोगे। दूसरा तुमने हमें स्त्री वियोग दिया, इसलिए तुम्हें भी स्त्री वियोग सहकर दुखी होना पड़ेगा और तीसरा श्राप यह कि जिस तरह हमें बंदर का रूप दिया है, इसलिए बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे और उनका सहारा लेना पड़ेगा।
वही यज्ञ में पहुंचे श्री श्री 108 श्री तारकेश्वर दास जी महाराज पीठाधीश्वर बाबा महेंद्र नाथ धाम मेंहदार के महंत का भव्य स्वागत किया गया। साहिब दरबार के पीठाधिपति पूज्य सरकार जी के अगुवाई में संत समाज के नेतृत्व कर रहे श्री श्री 108 श्री जगत नरायण दास जी महाराज, आचार्य संतोष कुमार द्विवेदी, डॉ अशोक पाण्डेय, श्रवण कुमार सहित दर्जनों श्रद्धालुओं द्वारा इस दौरान श्री श्री 108 श्री तारकेश्वर दास जी महाराज के चरण पखार कर चरणार्मित ग्रहण किए। इस दौरान साहिब दरबार के पीठाधिपति पूज्य सरकार जी ने बताया कि संत सेवा से बड़ा जगत में कोई धर्म नहीं होता है। संत की सेवा कर के परमात्मा से आत्मा का मिलन हो सकता है।