रोजी रोटी की तलाश में बिहार में समस्तीपुर के ताजपुर कस्बे का सफर!
लेखक: राजीव कुमार झा
मेरी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई नयी दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में संपन्न हुई और कुछ दिन पहले यहां के किसी पूर्व छात्र से फेसबुक पर मेरा परिचय हुआ और उसने अपना नाम मसूद बताया। खुद को बिहार के समस्तीपुर के ताजपुर कस्बे के निवासी के रूप में अपना परिचय दिया। उसने मुझे यह भी कहा कि उसका इस कस्बे में सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल का नाम दिल्ली पब्लिक स्कूल है। उन्होंने मुझे अपने स्कूल में हिंदी विषय के शिक्षक के तौर पर नौकरी करने के लिए आमंत्रित किया। मैं अपने शहर बड़हिया से उसका स्कूल देखने गया और वहां हिंदी शिक्षक के तौर पर मेरा इंटरव्यू भी हुआ। इंटरव्यू के बाद मसूद ने मुझे कहा कि वह भी जामिया मिल्लिया इस्लामिया का छात्र रहा है और वहां वह पालिटेक्निक में पढ़ता था। उसने मुझे अपने स्कूल में आकर पढ़ाने के लिए कहा और इसके बाद मैं अपने घर चला आया और आने के तीसरे दिन फिर मसूद के शहर ताजपुर लौटा। यह मुस्लिम बहुल इलाका है और इसके आसपास के क्षेत्रों में आगा खान फाउंडेशन के सामाजिक विकास के कार्यक्रम भी संचालित हैं।
खुसरो साहब से जब मैं मिला था तो उस समय वह इस संस्था के भारत में प्रमुख थे। संडे की छुट्टी में घर लौटा। जामिया के बी.एड. का एक छात्र भी स्कूल में कार्यरत था। सारे लोग मुझसे जूनियर थे। मैं स्कूल के गेस्ट रूम में ठहरा लेकिन बाद में मसूद को मैंने कहा कि मैं अब अपने घर जा रहा हूं क्योंकि मैं अब अपने घर के आसपास ही किसी स्कूल में नौकरी ढूंढने की कोशिश करूंगा।
ताजपुर के पास ही खुदीराम बोस पूसा स्टेशन स्थित है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर बमकांड के बाद इसी स्टेशन के आसपास से गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी। मैंने यहां से मौर्य एक्सप्रेस को पकड़ा और रात में घर चला आया। रास्ते में सिमरिया और हथिदह के बीच गंगा नदी पर बनने वाले नये पुल के निर्माण कार्य को भी देखने का मौका मिला। यहां वर्तमान राजेन्द्र पुल के दाएं और बाएं दो नये पुल जो रेल और सड़क पुल हैं। इनके निर्माण कार्य को देखा। यह पुल खूब जोर शोर से बनाया जा रहा है और रात में भी काम चल रहा था। राजेन्द्र पुल देश की आजादी के बाद उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ने के लिए बनाया गया था और अब यह कमजोर हो
गया है। इसी पुल से बेगूसराय औ कटिहार, किशनगंज के रास्ते गौहाटी और इसके आगे असम के और सुदूर इलाकों में भारतीय रेल पहुंचती है। मौर्य एक्सप्रेस से समस्तीपुर होते बड़हिया लौटने के दौरान हम कर्पूरी ग्राम से भी गुजरे। यह स्टेशन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की याद में बनाया गया है और वह यहां की जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री थे। कर्पूरी ग्राम के पास में ही उनका अपना गांव स्थित है। रास्ते में मुझे दूर - दूर तक समस्तीपुर जिले के गेहूं के खेतों को देखने का मौका मिला। चैत के इस महीने में यहां गेहूं के खेतों में कटाई हो रही थी। कुछ जगहों पर मकई के हरे भरे खेत भी देखने को मिला।