हाथीपांव के मरीजों के बीच एमएमडीपी कीट का हुआ वितरण, किया गया जागरूक!
फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर जरूर कराएं जांच, शुरुआती दौर में बीमारी की पहचान से इलाज संभव: डॉ ओपी लाल
सिवान (बिहार): फाइलेरिया (हाथी पांव, लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज नहीं होने से लोग दिव्यांग बन सकते हैं। उक्त बातें मैरवा रेफरल अस्पताल परिसर में रुग्णता प्रबंधन और विकलांगता की रोकथाम (एमएमडीपी) कीट का वितरण के दौरान जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ ओम प्रकाश लाल ने कही। आगे उन्होंने कहा कि फाइलेरिया जैसी बीमारी को जड़ से मिटाने के उद्देश्य से रुग्णता एमएमडीपी कीट को अनिवार्य रूप से वितरण करना आवश्यक होता है। रेफरल अस्पताल मैरवा के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रवि प्रकाश और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बसंतपुर के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ कुमार रवि रंजन के देखरेख में किया गया। ताकि फाइलेरिया के मरीज इसका सदुपयोग कर सके। क्योंकि फाइलेरिया ग्रसित अंगों मुख्यतः पैर या फिर प्रभावित अंगों से धोरे - धीरे पानी रिसता है। उस परिस्थिति में प्रभावित अंगों की साफ़ सफाई बेहद आवश्यक होता है। क्योंकि नियमित रूप से साफ-सफाई रखने मात्र से संक्रमण का डर नहीं रहता है। प्रभावित अंगों में सूजन की शिकायत कम रहती है। इसके प्रति लापरवाही बरतने से प्रभावित अंग खराब होने लगते हैं। संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए एमएमडीपी किट और आवश्यक दवा दी जा रही है। सबसे अहम बात यह है कि फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर तत्काल जांच कराना चाहिए। ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके।
पीरामल स्वास्थ्य के संचारी विभाग के कार्यक्रम प्रमुख मिथिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि क्यूलेक्स मच्छर फाइलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो उसे भी संक्रमित कर देता है। लेकिन संक्रमण के लक्षण 05 से 15 वर्ष में उभरकर सामने आता हैं। इससे या तो व्यक्ति को हाथ-पैर में सूजन की शिकायत होती है या फिर अंडकोष में सूजन आने की संभावना रहती हैं। हालांकि महिलाओं के स्तन के आकार में भी परिवर्तन हो सकता है। फाइलेरिया जैसी बीमारी का अभी तक कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं है। लेकिन शुरुआती दौर में रोग की पहचान होने की स्थिति में इसे रोका जा सकता है। संक्रमित होने के बाद मरीजों को प्रभावित अंगों की साफ सफाई सहित अन्य बातों को समुचित ध्यान रखना जरूरी होता है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बसंतपुर के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ कुमार रवि रंजन ने कहा कि स्थानीय प्रखंड में फाइलेरिया के 305 रोगियों की पहचान हुई है। जिसमें हाथीपांव के 272 जबकि हाइड्रोसिल के 33 शामिल हैं। जिसमें 08 हाथीपांव के रोगियों को एमएमडीपी कीट का वितरण किया गया है। जिस दौरान फाइलेरिया मरीजों को एमएमडीपी का प्रशिक्षण भी दिया गया। ताकि उसका उचित सदुपयोग में लाया जा सके। मरीजों को फाइलेरिया के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें एमएमडीपी के इस्तेमाल के फायदों के संबंध में भी बताया गया। मरीजों को बताया गया कि एमएमडीपी किट के नियमित इस्तेमाल से मरीज हाथीपांव की बढ़ोतरी पर काबू पा सकते हैं। लेकिन इसके लिए मरीजों को स्वयं जागरूक होना पड़ेगा। तभी जाकर उन्हें हाथीपांव से राहत मिलेगी। इस अवसर पर बीएचएम सफ़राज अहमद, वीबीडीएस आरती कुमारी सहित कई अन्य लोग शामिल थे
रेफरल अस्पताल मैरवा के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रवि प्रकाश ने कहा कि स्थानीय स्तर पर फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को लेकर समय समय पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं ताकि लाइलाज बीमारी को आसानी से मिटाया जा सकें। हालांकि विभागीय अधिकारियों द्वारा फाइलेरिया मरीजों में भृगुनाथ साह, कुमावती देवी, शिला देवी, प्रदीप कुमार, मीना देवी और लीलावती देवी को चैंपियन के रूप में चयन किया गया है ताकि आगामी 10 फरवरी से होने वाले सर्वजन दवा सेवन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर लोगों को जागरूक किया जा सकें। इस दौरान डीवीबीडीसीओ डॉ ओपी लाल, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, बीडीसीओ विकास कुमार, बीएचएम शाहिद अली अंसारी, बीसीएम पवन गिरि, पीरामल स्वास्थ्य की ओर से मिथिलेश कुमार पाण्डेय, वीसीसीएम मनोज कुमार सहित कई अन्य कर्मी मौजूद रहे।