विश्व थैलेसीमिया दिवस पर रक्त केंद्र में रक्तदान शिविर का हुआ आयोजन!
शादी के समय कुंडली मिलान की तरह ही थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य रूप करानी चाहिए: सिविल सर्जन
उम्र के अनुपात में शिशु के वजन में वृद्धि नहीं होना इसका मुख्य कारण: अधीक्षक
सिवान (बिहार): थैलेसीमिया से ग्रसित व्यक्ति के शरीर में रक्ताल्पता या एनीमिया की शिकायत हमेशा रहती है। क्योंकि शरीर में पीलापन, थकावट एवं कमजोरी का एहसास होना इसके मुख्य लक्षण होते हैं। हालांकि समय रहते इसका उपचार नहीं किया गया तो बीटा थैलेसीमिया के मरीज के शरीर में खून के थक्के जमा होने लगता हैं। उक्त बातें रक्त केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ अनूप कुमार दुबे ने थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर सदर अस्पताल परिसर स्थित रक्त केंद्र में आयोजित रक्तदान शिविर के दौरान रक्तदान करने आए युवाओं से कही। हालांकि उन्होंने जिलेवासियों से अपील करते हुए कहा कि रक्तदान करने से किसी प्रकार की कोई समस्या नही होती है। बल्कि पुरुष वर्ग को तीन महीने जबकि महिलाओं को प्रत्येक चार महीने के अंतराल पर अनिवार्य रूप से रक्तदान करना चाहिए। ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वास्थ्य रहने में सक्षम रह सके। एनीमिया की स्थिति गंभीर होने पर उन्हें खून चढ़ाने की सलाह दी जाती है। ज्यादा गंभीर नहीं होने की स्थिति में मरीज को दवा खाने के लिए सलाह एवं अत्यधिक गंभीर स्थिति वाले मरीज को मज्जा प्रतिरोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांट) की सलाह दी जाती है।
रक्त केंद्र की परामर्शी सुनीति श्रीवास्तव के नेतृत्व में जिला रक्तदाता और सारथी टीम के सहयोग से रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। जबकि इस अवसर पर डॉ जेबा प्रवीण, डॉ मारिया और डॉ मुंतजिर, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, साहिल मकसूद, नेहमतुल्लाह खान, सलीम सहित कई अन्य अधिकारी और कर्मी मौजूद रहे।
सदर अस्पताल के अधीक्षक डॉ अनिल कुमार सिंह का कहना है कि नवजात शिशु जो थैलेसीमिया से ग्रसित होता है उसमें जन्म के उपरांत कुछ महीनों के अंदर ही एनीमिया के लक्षण दिखाई देने लगता है। उम्र के अनुपात में शिशु के वजन में वृद्धि नहीं होती है। इसके साथ ही उसकी लंबाई भी कम होती है। उस बच्चे का उपचार जल्द नहीं कराए जाने की स्थिति में नवजात शिशुओं में कुपोषण की शिकायत प्रबल हो जाती है। पति और पत्नी को शिशु की चाह रखने वाले को अपनी रक्त जांच करवानी चाहिए। जिससे आने वाले समय में किसी भी तरह की जटिलता से बचा जा सके। शरीर एवं आंखों का पीलापन, पीलिया से ग्रसित होना, स्वभाव में चिडचिडापन, भूख न लगना और थकावट एवं कमजोरी का महसूस होना थैलेसीमिया से ग्रसित शिशु या व्यक्तियों में इस तरह के प्रारंभिक चरण में लक्षण नजर आता है।
सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद का कहना है कि जिले में फिलहाल 53 थैलेसीमिया के मरीज हैं। क्योंकि थैलेसीमिया एक रक्त जनित रोग है जो मानव शरीर में हीमोग्लोबिन के उत्पादन को कम करता है। हीमोग्लोबिन का कम स्तर शरीर के विभिन्न अंगों में ऑक्सीजन की कमी करता है। जिसको लेकर थैलेसीमिया रोग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष "थैलेसीमिया के लिए एकजुट हों: समुदायों को एकजुट करें, रोगियों को प्राथमिकता दें।" थीम के तहत विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया गया है। जिलेवासियों से अपील करते हुए कहा गया कि शादी विवाह के पहले जिस तरह से लड़का और लड़की का जन्म कुंडली एवं गुणों का मिलान किया जाता है, ठीक उसी तरह से थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य रूप से करानी चाहिए। ताकि भविष्य में किसी थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित नवजात का जन्म नहीं हो।