जीती बाजी हार गए हम!
आतंकवाद के सफाये के लिए भारत सरकार द्वारा किये गए हमलों में पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकी ठिकाने ध्वस्त कर दिए गए तथा एक सौ से अधिक खूंखार आतंकवादी एवम आठ सौ से अधिक आदतन आतंकी भी मारे गए बावजूद इसके अमेरिकी दबाव में आकर युद्धविराम को स्वीकार करके हम अपनी जीती बाजी हार गए। इस अघोषित युद्ध में भारत व पाक के अनेक सैनिक शहीद हुए। इस दौरान दोनों देशों के हजारों करोड़ के सैन्य उपकरण भी नष्ट हुए। सोमवार की शाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने सन्देश में इन हमलों की मज़बूरियत,उपयोगिता एवम उपलब्धियों को चुन चुन कर गिनाया तथा देश की जनता के जेहन में उतपन्न संशय को दूर करने का भरसक प्रयास किया। बावजूद इसके अमेरिकी राष्ट्रपति के आग्रह पर की गई सीजफायर की घोषणा के बाद देश के लोगों के जेहन में अनेक सवाल कौंध रहे हैं। आने वाले दिनों में भारत की धरती पर पाकिस्तान की शह पर कभी भी कोई आतंकी घटनाएँ घटित नही होंगी तथा कौन लेगा इस बात की गारंटी। देश के लोग यह जानने को भी बेताब हैं कि पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पिछले दिनों बंधक बनाए गए बीएसएफ के जवान की सुरक्षित वापसी के लिए सरकार ने अबतक कौन सा कदम उठाया। जवान के परिजन आस लगाए बैठे हैं कि उनके कलेजे के टुकड़े को सरकार पाक सैनिकों के कब्जे से बंधनमुक्त कराएगी।
बेशक यह अघोषित युद्ध हम जीत रहे थे, तब भी विश्व के सबसे बड़े आतंकी सरगना हाफिज सईद को किन शर्तों पर बख्शा गया। पीओके पर कब्जा करने कि हमारी वर्षों पुरानी माँग को सरकार द्वारा क्यों अनसुना कर दिया गया तथा बलूचिस्तान को अलग गणराज्य घोषित कराने में वहाँ के नागरिकों अथवा विद्रोहियों की मदद करने के बजाय हमारी सरकार ने पाकिस्तान की सरकार का समर्थन किन शर्तों पर किया। सरकार को इन सब ज्वलंत व सामयिक सवालों का जबाब देना चाहिए। देश के लोगों के आक्रोश से जुड़ा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल कि आखिर अमेरिकी दबाव में युद्ध विराम को क्यों स्वीकार किया गया। जबकि पहले की सरकारों ने अमेरिकी चौधराहट को अस्वीकार करके अपनी महत्ता स्थापित की थी। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में इस महाअभियान के दौरान आम जनता की भावनाओं का कितना सम्मान किया गया इसका आकलन किया जाना चाहिए।पाकिस्तान में संचालित आतंकी गतिविधियों का समूल नाश करके हमेशा हमेशा के लिए पाकिस्तान को घुटनों के बल लाने की घोषणा करके देश की जनता का विश्वास जीतने वाली हमारी सरकार ने आतंकवाद रूपी जहरीले नाग को अधमरा करके क्यों छोड़ दिया।
राजनीतिक एवम वैचारिक स्तर पर देश की जनता के भरोसे पर टिकी सरकार जनता की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरी, मंथन किया जाना चाहिए तथा इस मुद्दे पर दल अथवा मित्र दलों की सहमति क्यों नही ली गई,सवाल उठना स्वाभाविक है। सुझाव के तौर पर यह कहा जा सकता है कि देश की संप्रभुता से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों पर या तो जनमत सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए था अथवा सूचना एजेंसियों के माध्यम से जनता की राय ली जानी चाहिए थी। इसके अलावा पिछले एक सप्ताह में तेजी से बदलती वैश्विक गतिविधियों पर विचार विमर्श के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए थी अथवा देश को विश्वास में लेने के लिए संसद का विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता था। देश की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए आतंकवाद के खिलाफ चलाये गए अबतक के सबसे महत्वपूर्ण अभियान को अचानक और अकारण रोकने के बजाय सरकार को इन ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को एकबार अवश्य विचार करना चाहिए।