कवितालोक साहित्यांगन के चित्र आधारित सृजन प्रतियोगिता में तीन श्रेष्ठ छंदकार को दिव्यालय ने किया सम्मानित!
प्रथम
हरिप्रिया छंद
रचना:मंजु बंसल (बैंगलोर)
शीतल बहती बयार, आई है अब बहार।
खुशियाँ छाई अपार, नया रंग लाया॥
ओस गिरे है विहान, ताक रहा है किसान।
धूप सूर्य की निदान, सबके मन भाया॥
आया है पर्व खास, ख़त्म होता खर मास,
नई फसल की आस, लोहड़ी मनाते।
मन में उठती उमंग, नाचे सब संग-संग,
रहा थिरक अंग-अंग, अग्न हैं तापते॥
व्योम चूमती पतंग, भरती दिल में उमंग,
लहरे जैसे तरंग, उत्सव है आया।
बैठे सब प्रेम भाव, नहीं करें हम दुराव,
अब चले जीवन नाव, मनवा हरषाया॥
======================
द्वितीय
हरिप्रिया छंद -लोहिड़ी
रचना:मनीषा अग्रवाल 'प्रज्ञा'
पर्व लोहड़ी महान, करें सभी नाच गान, सिक्खों की देख शान, खुशियाॅं है लाई।
बदल रहा सूर्य चाल, बच्चे करते धमाल, थपकी दे हाथ ताल, दे रहे बधाई।।
नाचें सब आग पास, रखते हैं आज आस, बनके हम ईश दास, हृदय प्रेम आया।
सभी करें आज नृत्य, भरा प्रेम भाव कृत्य, लगते हैं ईश भृत्य, सबके मन भाया।।
नया साल नव विहान, खुशी मिले हैं किसान, खूब फसल खेत जान, साथ मिले झूमे।
मूॅंगफली आज हाथ, बैठे हैं साथ-साथ, झुकता है नित्य माथ, माॅं बालक चूमे।।
नए वस्त्र धार आज, करें देख खूब साज, मने पर्व जान राज, हॅंसती है नारी।
चमक रहा तेज भाल, लगे देख नया साल, दिए सभी पैर ताल, नृत्य रखे जारी ।।
=======================
तृतीय
विधा-गीत
मात्रा भार 16/14
शीर्षक -बैसाखी
रचना: प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)
बैसाखी का पर्व निराला,
गीत खुशी के गाओ रे।
आया है अनुपम यह मौसम,
सुख से नित्य नहाओ रे।।
दुल्हन जैसा वेश बनाकर,
साजन के संग नृत्य करें।
तन उल्लासित मन है पुलकित
मन गगरी में हर्ष भरें।।
जैसी मोहक लगती धरती,
वैसे गात सजाओ रे।
बैसाखी का पर्व निराला,
गीत खुशी के गाओ रे।।
मिलन रागिनी गाता मौसम,
झूम रही उर की डाली।
उड़- उड़ जाए चूनर धानी ,
चले पवन जब मतवाली।।
प्रथम प्रेम की प्रथम छुअन से,
रति सम रूप लजाओ रे।
बैसाखी का पर्व निराला,
गीत खुशी के गाओ रे।।
भाँति-भाँति के फूल खिले हैं
देखो मन के उपवन में।
आते पास पिया जी ज्यों ही,
सरगम बजती धड़कन में।।
प्रेम पुष्प की मधुर गंध से,
तन- मन को महकाओ रे।
बैसाखी का पर्व निराला,
गीत खुशी के गाओ रे।।
=======+++=======++++===