छपरा से उत्पन्न ज्ञान की ज्योति से हिंदुस्तान से लेकर पाकिस्तान तक जगमगा रहा है!: स्वामी सत्यानन्द जी महाराज
सारण (बिहार) संवाददाता वीरेश सिंह: छपरा से उत्पन्न ज्ञान की ज्योति से हिंदुस्तान से लेकर पाकिस्तान तक जगमगा रहा है, परंतु छपरा वासी उस ज्ञान की ज्योति से आज भी वंचित हैं। यह बातें बक्सर के राजपुर आश्रम से पधारे स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने माँझी के नंदपुर स्थित ब्रम्हविद्यालय में आयोजित सत्संग कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहीं।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के टेरी में प्रतिवर्ष 9 एवम दस जुलाई को विराट आयोजन होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। उन्होंने बताया कि आगामी नौ जुलाई को स्वामी जी के ननिहाल माँझी के नंदपुर आश्रम से छपरा शहर के दहीयावाँ तक विशाल पदयात्रा निकाली जायेगी जिसमें हजारों श्रद्धालु भक्तगण आदि शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि स्वामी अद्वैतानंद जी महाराज ने धर्म को बड़े ही सहज व सुगम ढंग से परिभाषित किया है उनके उपदेश से प्रभावित होकर लाखों लोग घर गृहस्ती सम्हालने के साथ साथ ब्रम्हविद्यालय आश्रमों से जुड़ रहे हैं। तथा ज्ञान एवम भक्ति के सागर में गोता लगा कर अपना जीवन धन्य बना रहे हैं।
छपरा शहर के दहीयावा मुहल्ले में तुलसीराम पाठक के घर रामनवमी को जन्में रामरूप तथा राम नारायण के बाद रामयाद के नाम से जाने गए प्रख्यात संत ने पाकिस्तान के सीमांत टेरी में आश्रम की स्थापना की तथा वर्ष 1919 में ब्रम्हलीन होने के बाद वहीं समाधिस्त हो गए। बिहार के बक्सर से रोहतास के जंगल में पहुंचे सारण के संत ने गुफा में रहकर छह वर्षों तक कि कठोर तपस्या की। तत्पश्चात धर्म का प्रचार करते हुए पटना मोतिहारी तथा अयोध्या पहुँचे। बीच बीच में संतों का सानिध्य प्राप्त करते वे काशी मथुरा वृंदावन होते हुए राजस्थान के जयपुर पहुँचकर संत परमहंस दयाल स्वामी अद्वैतानंद जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हो गए। वहां उन्होंने 16 वर्षों तक धर्म का प्रचार प्रसार किया। देश के अलग अलग स्थानों पर उन्होंने दर्जनों आश्रमों की स्थापना की। अनेक सिद्धियों को प्राप्त करने के बाद अपने जीवनकाल के अंतिम क्षणों में सीमांत प्रान्त के टेरी।पाकिस्तान। में आश्रम की स्थापना करने के बाद वे वर्ष 1919 में ब्रम्हलीन हो गए। तत्पश्चात वे वहीं समाधिस्त हो गए। सन 1846 में छपरा के दहीयावाँ में जन्मे श्री श्री 108 श्री परमहंस दयाल अद्वैतानंद जी महाराज परमहंस के उपदेशों से आज भी छपरा के लोग वंचित हैं। आश्रम से जुड़े संत महात्माओं को इस बात का मलाल है। सीमांत प्रान्त के टेरी में आतंक के साये में रहकर सामाजिक असमानता के शिकार लोगों को ईश्वरीय शक्ति और गुरु की भक्ति का संदेश देकर खुद समाधिस्थ हो गए।